Rahul Gandhi Achievements: नेता प्रतिपक्ष के रूप में कितने खरे उतरे राहुल गांधी? जाति जनगणना, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर खींचा सबका ध्यान

राहुल गांधी का एक साल: विपक्ष को नई दिशा, जाति जनगणना से लेकर जन संसद तक।
नेता प्रतिपक्ष के रूप में कितने खरे उतरे राहुल गांधी? जाति जनगणना, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर खींचा सबका ध्यान

नई दिल्ली:  कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पिछले महीने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर एक साल पूरे कर लिए। पार्टी ने बुधवार को उनके नेतृत्व में कांग्रेस की उपलब्धियों को याद किया।

नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी का एक साल का कार्यकाल कई उपलब्धियों से भरा रहा, जिसमें केंद्र सरकार पर दबाव डालकर देशव्यापी जाति जनगणना की घोषणा करवाना, लेटरल एंट्री नोटिफिकेशन रद्द करवाना और 'संविधान बचाओ' के नारे को राष्ट्रीय चर्चा का हिस्सा बनाना शामिल है।

रायबरेली से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी जून 2024 में नेता प्रतिपक्ष नियुक्त हुए थै। तब कांग्रेस कमजोर स्थिति में थी, फिर भी पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि राहुल गांधी ने पार्टी को मजबूत किया और उसे मुख्य विपक्षी दल के तौर पर वह 'सम्मान' दिलाया, जिसकी पार्टी हकदार थी।

गौरतलब है कि 16वीं और 17वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष नहीं था क्योंकि किसी भी दल के पास लोकसभा की 10 प्रतिशत सीटें (54 सीटें) नहीं थीं। हालांकि, 2024 के चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटें जीतकर एक दशक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।

कांग्रेस ने 2024 में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ब्लॉक के साथ मिलकर भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का मुकाबला किया, लेकिन चुनाव के बाद गठबंधन में बिखराव देखने को मिला। इसके बावजूद राहुल गांधी ने संसद के अंदर और बाहर सरकार को घेरने का काम किया।

नेता प्रतिपक्ष के तौर पर उनके पहले भाषण 'डरो मत, डराओ मत' ने सबका ध्यान खींचा। उन्होंने मनुस्मृति और संविधान की तुलना कर सरकार को कठघरे में खड़ा किया और आरोप लगाया कि सरकार धार्मिक ग्रंथ के सिद्धांतों को बढ़ावा दे रही है, जो जातिगत भेदभाव को प्रोत्साहित करता है।

राहुल गांधी ने केंद्र की 'तानाशाही' के खिलाफ संविधान की रक्षा का मुद्दा उठाया, जिसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव में दिखा था। व्यक्तिगत रूप से राहुल गांधी और संयुक्त विपक्ष के तौर पर 'इंडिया' ब्लॉक यह संदेश देने में काफी हद तक सफल रहा कि देश के संस्थान खतरे में हैं।

पिछले एक साल में नेता प्रतिपक्ष ने 16 संसदीय भाषणों में सरकार की नीतियों और बजट पर सवाल उठाए, जिसमें उन्होंने कहा कि ये नीतियां देश के अरबपतियों के पक्ष में हैं और गरीबों तथा वंचितों को नजरअंदाज करती हैं। उन्होंने बेरोजगारी का मुद्दा भी जोर-शोर से उठाया।

राहुल गांधी की एक खास उपलब्धि में 'जन संसद' पहल शामिल है, जिसके जरिए विभिन्न समुदायों को अपनी समस्याएं सीधे संसद तक ले जाने का मौका मिला। उन्होंने संसद को जनता के मुद्दों पर चर्चा का मंच बनाने का विचार दिया और इसे अमल में भी लाए।

उन्होंने संसद सत्र के दौरान किसानों (अन्नदाताओं) से मुलाकात की, जिनसे मिलने से कथित तौर पर दिल्ली सरकार ने मना कर दिया था। राहुल ने उनकी समस्याएं सुनीं, जिनमें कृषि ऋण और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जैसे मुद्दे शामिल थे।

रायबरेली सांसद ने ओबीसी कर्मचारी महासंघ के एक प्रतिनिधिमंडल से भी मुलाकात की, जहां उन्होंने सरकारी नौकरियों में अवसरों और प्रतिनिधित्व से संबंधित उनकी समस्याएं सुनीं। इस दौरान राहुल ने समुदायों के लिए समान प्रतिनिधित्व की जोरदार वकालत की, जो उनके 'जितनी आबादी, उतना हक' के चुनावी नारे को मजबूत करता है।

केंद्र सरकार द्वारा जाति जनगणना की घोषणा ने भाजपा और कांग्रेस के बीच तीखी बहस छेड़ दी। इस फैसले ने राजनीतिक विश्लेषकों को भी हैरान कर दिया। कई लोग यह देखकर आश्चर्यचकित थे कि सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस की मांग के सामने 'झुक' गई। भाजपा ने दावा किया कि यह फैसला किसी दबाव में नहीं बल्कि सामाजिक न्याय के लिए लिया गया है, जबकि कांग्रेस ने इसे अपनी लंबे समय से चली आ रही मांग की जीत बताया।

नेता प्रतिपक्ष के अपने संवैधानिक दायित्वों के अलावा राहुल गांधी ने जनता की राय को प्रेरित करने और लोगों के मुद्दों पर चर्चा का विषय तय करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

हालांकि, मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस पार्टी के प्रमुख बने हुए हैं, लेकिन पार्टी के भीतर यह आम धारणा है कि राहुल के चुस्त और ऊर्जावान नेतृत्व ने पार्टी को नया जीवन और जोश दिया है। उनकी जाति जनगणना और 'संविधान बचाओ' की अपील का जनता के बीच गहरा असर रहा, जो उनकी सभाओं, रैलियों और लोगों से मुलाकातों में भी दिखा।

कांग्रेस पार्टी के अनुसार, रायबरेली सांसद ने पिछले एक साल में 16 राज्यों का दौरा किया और देश भर में लोगों के मुद्दों को उठाया। उन्होंने पूरे भारत में 60 से अधिक सार्वजनिक रैलियों और जनसभाओं को संबोधित किया और लोगों की समस्याओं को समझने के लिए 115 से अधिक संवाद सत्र आयोजित किए।

कांग्रेस सांसद ने इस दौरान 18 प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार से कई मुद्दों पर सवाल पूछे और उसे विभिन्न मोर्चों पर जवाबदेह ठहराया।

 

Related posts

Loading...

More from author

Loading...