Yaganti Temple: यहां कलयुग के प्रतीक के रूप में विराजमान हैं नंदी महाराज, समय के साथ बढ़ता है आकार

यागंती मंदिर का रहस्य, नंदी महाराज की मूर्ति हर 20 साल में बढ़ती है।
यागंती उमा महेश्वर मंदिर: यहां कलयुग के प्रतीक के रूप में विराजमान हैं नंदी महाराज, समय के साथ बढ़ता है आकार

नई दिल्ली: देश में कई रहस्यमयी मंदिर हैं, जहां की पौराणिक कथा और चमत्कार भक्तों को मंदिर की चौखट तक पहुंचा ही देते हैं। कलयुग में भगवान शिव और नंदी महाराज का ऐसा मंदिर है, जहां पत्थर के बने नंदी महाराज का आकार बढ़ता रहता है।

यह जानकर हैरानी होगी, लेकिन ये सच है। ये रहस्यमयी मंदिर आंध्र प्रदेश में स्थित है, जहां भक्त अपनी मनोकामना लेकर आते हैं।

आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में विजयवाड़ा से 359 किमी दूर और हैदराबाद से 308 किमी दूर यागंती उमा महेश्वर मंदिर है। मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और महर्षि अगस्त्य से जुड़ा है।

माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में संगम वंश के राजा हरिहर बुक्का राय ने करवाया था। मंदिर के बनाव और दीवारों पर पल्लव और चोल वंश दोनों की नक्काशी दिखती है। मंदिर के आस-पास बहुत सारी गुफाएं मौजूद हैं, जो ऋषियों और मुनियों की तपस्या की गवाही देती हैं। माना जाता है कि इन गुफाओं में बड़े महाऋषियों ने तपस्या कर सिद्धि प्राप्त की थी। इन पवित्र गुफाओं का दर्शन पाने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं।

गुफाओं के अलावा मंदिर में विराजमान नंदी महाराज भक्त और विज्ञान दोनों के लिए रहस्य बने हुए हैं। बताया जाता है कि नंदी महाराज की पत्थर की बनी आकृति हर 20 साल में एक इंच बढ़ जाता है और बढ़ने के साथ ही नंदी महाराज के आस-पास लगे खंभों को हटाना पड़ता है। मान्यता है कि नंदी महाराज कलयुग का प्रतीक है और जब कलयुग खत्म हो जाएगा, तब नंदी महाराज की प्रतिमा जिंदा हो जाएगी। इस प्रतिमा को रंका भी कहा जाता है, जिसका संबंध कलयुग में जीवित नंदी महाराज से है।

मंदिर के इतिहास में झांका जाए तो मंदिर के इतिहास को महर्षि अगस्त्य से जोड़ा गया है। इसी स्थान पर महर्षि अगस्त्य ने तपस्या की थी और फिर भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर बनाने की इच्छा प्रकट की, लेकिन भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर की स्थापना के समय प्रतिमा का अंगूठा टूट गया और प्रतिमा खंडित हो गई। ऐसे में भगवान शिव ने महर्षि अगस्त्य को वहां अपना कैलाश स्वरूप मंदिर बनाने का संकेत दिया था।

इस मंदिर की खास बात ये है कि इस मंदिर में कौवे नहीं आते हैं। माना जाता है कि जब महर्षि अगस्त्य तपस्या में लीन थे तब कौवे ने उनकी तपस्या भंग करने की कोशिश की थी। तब अगस्त्य महर्षि ने परेशान होकर कौवों को शाप दे दिया था, जिसके बाद से मंदिर या उसके आस-पास के इलाके में कौवे नहीं देखे जाते।

 

 

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