नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत 'आत्मनिर्भर भारत' के सपने को साकार करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। इस दृष्टिकोण को मजबूती देने वाला उनका 'वोकल फॉर लोकल' अभियान स्वदेशी उत्पादों को अपनाने और आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम बन चुका है।
पीएम मोदी ने कहा है कि यह अभियान केवल आर्थिक स्वावलंबन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र निर्माण में हर नागरिक की भागीदारी का प्रतीक है। हमारा एक छोटा सा कदम, जैसे स्वदेशी वस्तुओं को चुनना, भारत की प्रगति में बड़ा योगदान दे सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्वदेशी अपनाने के प्रणेता 'गणेश वासुदेव जोशी' थे, जिन्हें 'सार्वजनिक काका' के नाम से भी जाना जाता है? आइए, जानते हैं कि कैसे उन्होंने स्वदेशी के विचार को पहली बार भारत में प्रस्तुत किया और इसे एक आंदोलन का रूप दे दिया।
गणेश वासुदेव जोशी ने 1870 के दशक में पुणे में 'सार्वजनिक सभा' की स्थापना की और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देकर भारत की आर्थिक निर्भरता को कम करने का आह्वान किया। उनका यह विचार न केवल आर्थिक स्वावलंबन का प्रतीक था, बल्कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशक्त संदेश भी था। बाद में, इस स्वदेशी भावना को बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे नेताओं ने बंगाल विभाजन के दौरान और अधिक मजबूती प्रदान की, जिससे यह स्वतंत्रता संग्राम का एक अभिन्न अंग बन गया।
जोशी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 12 जनवरी 1872 को खादी पहनने की शपथ ली और जीवनभर इसका पालन किया। उन्होंने खादी के उपयोग को बढ़ावा देकर स्वदेशी भावना को बल दिया, जो बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा बना।
जोशी को कृषि और स्वास्थ्य के क्षेत्र में गहरी रुचि थी। वे मानते थे कि वैज्ञानिक ज्ञान के साथ खेती में नए प्रयोग किए जाने चाहिए। गणेश वासुदेव की औपचारिक शिक्षा केवल मराठी भाषा में हो पाई, लेकिन बड़े होने पर निजी तौर पर उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी।
गणेश वासुदेव जोशी, जिन्हें 'सार्वजनिक काका' के नाम से जाना जाता है, का जन्म 9 अप्रैल 1828 को सातारा, महाराष्ट्र में हुआ था। उनका निधन 25 जुलाई 1880 को हुआ। उनके सामाजिक और स्वदेशी कार्यों ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व बनाया।