Udaypur Files Court Order: 'उदयपुर फाइल्स' की रिलीज का बढ़ा इंतजार, दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसले तक लगाई रोक

‘उदयपुर फाइल्स’ पर रोक, हाईकोर्ट बोले- सरकार फैसला ले तब तक फिल्म रिलीज न हो
'उदयपुर फाइल्स' की रिलीज का बढ़ा इंतजार, दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसले तक लगाई रोक

नई दिल्ली:  कन्हैया लाल हत्याकांड पर बनी फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' रिलीज नहीं होगी। दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसले तक फिल्म की रिलीज पर अंतरिम रोक लगा दी।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक सरकार कोई फैसला नहीं लेगी, तब तक फिल्म की रिलीज पर रोक रहेगी। हाईकोर्ट ने कहा कि हमारी राय में याचिकाकर्ता को इस एक्ट के सेक्शन-6 के तहत केंद्र सरकार के पास अर्जी दाखिल करनी चाहिए। केंद्र के पास इस सेक्शन के तहत फिल्म की रिलीज को रोकने का अधिकार है। इसे लेकर अदालत ने जमीयत को सरकार के पास अर्जी दाखिल करने के लिए दो दिन का वक्त दिया है। साथ ही हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर केंद्र सरकार के पास ऐसी अर्जी आती है तो वह एक हफ्ते में फैसला ले।

दिल्ली हाई कोर्ट में गुरुवार को कन्हैया लाल हत्याकांड पर बनी फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' की रिलीज से संबंधित मामले पर सुनवाई हुई।

'उदयपुर फाइल्स' फिल्म के निर्माता की ओर से वकील ने कहा कि नूपुर शर्मा का बयान हटा दिया गया है। मेरे पास कन्हैया लाल हत्याकांड में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की चार्जशीट है, जिसमें इसी बात का जिक्र है। हाईकोर्ट ने कहा कि आप जांच के दौरान एकत्रित की गई किसी भी जानकारी के आधार पर फिल्म की कहानी को सही नहीं ठहरा सकते हैं।

फिल्म निर्माता के वकील ने कहा कि फिल्म की स्टोरी भारत-पाकिस्तान की कहानी पर आधारित है। यह कहना बिल्कुल गलत है कि सभी मुसलमानों को नकारात्मक रूप में दिखाया गया है। 55 कट इस बात के भी प्रमाण हैं कि सांप्रदायिक वैमनस्य के पहलू पर भी ध्यान दिया गया है। शुक्रवार के लिए 1,800 थिएटर बुक किए गए हैं और करीब एक लाख टिकट बिक चुके हैं।

वहीं, सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) की तरफ से बोलते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने कहा कि आप फिल्म देखिए। यह किसी समुदाय विशेष पर नहीं, बल्कि अपराध विशेष पर बनी फिल्म है। पूरी कहानी यही है कि सांप्रदायिक वैमनस्य के बीज एक सुनियोजित तरीके से सीमा पार से बोए और फैलाए जा रहे हैं। फिल्म में समुदायों के बयान 'हम सभी को मिलकर रहना चाहिए' को शामिल किया गया है।

इस पर हाई कोर्ट ने पूछा कि इसका फिल्म से क्या लेना-देना है? शर्मा ने कहा कि फिल्म यहां के लोगों को सावधान करती है। यह एक अपराध पर बनी फिल्म है। हम सभी को मिलजुलकर रहना चाहिए, यही इस फिल्म की कहानी है। अगर किसी को इससे कोई आपत्ति है तो मुझे कुछ नहीं कहना।

चेतन शर्मा ने कहा कि सीबीएफसी बोर्ड इस तथ्य से अवगत है कि सामान्यतः या विशेष रूप से किसी समुदाय विशेष को टारगेट नहीं करना चाहिए। फिल्म का सब्जेक्ट कोई समुदाय नहीं, बल्कि अपराध है। देवबंद का रेफरेंस बदल दिया गया है। नूपुर शर्मा या ज्ञानवापी का संदर्भ हटा दिया गया है।

वहीं, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अदालत के सामने अपनी दलील रखते हुए कहा कि हमने पहली बार फिल्म देखी है। फिल्म निर्माता के वकील का कहना है कि फिल्म का किसी समुदाय से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन मेरा कहना है कि फिल्म एक समुदाय को बदनाम करने के अलावा और कुछ नहीं है।

सिब्बल ने कहा कि फिल्म हिंसा और नफरत से भरी है और एक समुदाय को निशाना बनाती है। एक समुदाय को ऐसे दिखाया गया है, मानो वह समाज की बुराइयों का ही प्रतिनिधित्व करता हो। जिस व्यक्ति ने यह फिल्म बनाई है, उसका बैकग्राउंड आज एक अंग्रेजी अखबार में छपा है, जिससे पता चलता है कि उसने अतीत में क्या किया? उन्होंने कहा कि फिल्म की शुरुआत एक ऐसे दृश्य से होती है, जहां एक वर्ग विशेष का आदमी दूसरे वर्ग की जगह पर मांस का टुकड़ा फेंकता है और दूसरे दृश्य में पुलिस वर्ग विशेष से संबंधित छात्रों को गिरफ्तार करती है।

 

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