त्रेतायुग के इस मंदिर में 22 फीट लंबे नाग पर शयन करते हैं केशव, अद्भुत है सरसों, गुड़ और चूने से बनी अति प्राचीन मूर्ति

त्रेतायुग के इस मंदिर में 22 फीट लंबे नाग पर शयन करते हैं केशव, अद्भुत है सरसों, गुड़ और चूने से बनी अति प्राचीन मूर्ति

कन्याकुमारी, 15 अगस्त (आईएएनएस)। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रौनक देश-दुनिया के तमाम मंदिरों में छाई हुई है। ये रहस्यों और हैरत में डालने वाले मंदिर भक्ति के एक अलग ही रंग को बिखेरते हैं। ऐसा ही एक नारायण धाम तमिलनाडु के कन्याकुमारी में है। ये जिले के तिरुवत्तार में स्थित है, जिसका नाम आदि केशव पेरुमल मंदिर है। यह एक ऐसा आध्यात्मिक रत्न है, जहां भगवान विष्णु 22 फीट लंबे शेषनाग पर भुजंग शयन मुद्रा में विराजते हैं।

108 दिव्य देशम में शामिल (108 विष्णु मंदिरों का एक समूह है, जो वैष्णव परंपरा में पूजनीय है। ये मंदिर भारत और नेपाल में हैं।) आदि केशव का यह मंदिर, तीन नदियों- तमिराभरणी, कोथाई और पहराली के बीच बसा है। सरसों, गुड़ और चूने से बनी प्राचीन मूर्ति, केरल शैली की वास्तुकला इसे भव्य बनाती है।

तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में तिरुवत्तार में बसा आदि केशव पेरुमल मंदिर एक प्राचीन और आध्यात्मिक स्थल है। यहां भगवान विष्णु आदि केशव पेरुमल के रूप में 22 फीट लंबे शेषनाग पर भुजंग शयन मुद्रा में विराजमान हैं। इस मंदिर की अनूठी वास्तुकला, ऐतिहासिक महत्व और आध्यात्मिक आभा इसे दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक बनाती है।

आदि केशव पेरुमल मंदिर पहले त्रावणकोर राज्य का हिस्सा था और अब तमिलनाडु के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ न्यास विभाग के अधीन है। इसकी केरल शैली की वास्तुकला तिरुवनंतपुरम के प्रसिद्ध अनंत पद्मनाभस्वामी मंदिर से मिलती-जुलती है। मंदिर के गर्भगृह तक 18 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचा जाता है। मंदिर परिसर में सुंदर भित्ति चित्र, मूर्तियां और पेंटिंग्स इसकी शोभा को और बढ़ाते हैं।

आदि केशव पेरुमल मंदिर का आध्यात्मिक महत्व इसके रीति-रिवाजों और परंपराओं में झलकता है, जो पद्मनाभस्वामी मंदिर से काफी हद तक समान हैं। खास बात यह है कि दोनों मंदिरों की मुख्य मूर्तियां एक-दूसरे की ओर मुख करके स्थापित हैं। आदि केशव पेरुमल पश्चिम की ओर है और पद्मनाभस्वामी पूर्व की ओर है। यह प्रतीकात्मक व्यवस्था दोनों मंदिरों के बीच गहरे आध्यात्मिक जुड़ाव को दिखाती है। मंदिर में वैकुंठ एकादशी का त्योहार सबसे प्रमुख है, जिसे भक्त बड़ी धूमधाम और भक्ति के साथ मनाते हैं। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन-पूजन के लिए आते हैं।

मंदिर की विशाल मूर्ति का निर्माण सरसों, गुड़ और चूने से हुआ है। यह मूर्ति न केवल कला का उत्कृष्ट नमूना है, बल्कि प्राचीन शिल्पकला की तकनीक को भी दिखाती है। मंदिर का परिसर शांत है। यहां की दीवारों पर उकेरे गए चित्र और मूर्तियां दक्षिण भारतीय कला और संस्कृति की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करते हैं।

यह मंदिर द्रविड़ वास्तुकला पर आधारित है, लेकिन इसमें लकड़ी की छतें, स्तंभ और द्वार हैं। मंदिर में देवी मरागाथावल्ली थायर की मूर्ति और लक्ष्मी नरसिंहमूर्ति के लिए एक अलग मंदिर भी है। यही नहीं, मंदिर में लगभग 18 फीट चौड़ा और 3 फीट ऊंचा एक ही पत्थर से बना ओत्रैकल मंडपम भी है। मान्यता है कि मार्च से अप्रैल और सितंबर से अक्टूबर तक सूर्य की किरणें सीधे इस मूर्ति पर पड़ती हैं।

इसके साथ ही शिलालेखों में मंदिर की स्थापना से संबंधित उल्लेख मिलता है। शिलालेखों के अनुसार, इसकी स्थापना त्रेता युग में हुई थी। ऐसा माना जाता है कि गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के संस्थापक चैतन्य महाप्रभु ने मंदिर में ब्रह्म संहिता की खोज की थी। 2500 वर्ष पूर्व निर्मित मंदिर का उल्लेख महर्षि वेदव्यास के रचित वैष्णव पुराण, पद्म पुराण में भी मिलता है।

आदि केशव पेरुमल मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र है। तमिलनाडु पर्यटन विभाग इसे कन्याकुमारी के प्रमुख स्थलों में से एक के रूप में जगह देता है।

--आईएएनएस

एमटी/केआर

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