नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न विरोधी कानून के दायरे में लाने की मांग की गई थी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा, "यह संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। हम इसमें कैसे हस्तक्षेप कर सकते हैं? यह एक नीतिगत मामला है।"
वरिष्ठ वकील शोभा गुप्ता ने याचिकाकर्ता की ओर से कहा कि वे नया कानून बनाने की मांग नहीं कर रही हैं, बल्कि केवल यह चाहती हैं कि यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, जिसे 'पॉश एक्ट' के नाम से जाना जाता है, की व्याख्या ऐसी हो कि राजनीतिक दल भी इसके दायरे में आएं।
उन्होंने कहा कि केरल हाई कोर्ट के एक फैसले में स्पष्ट किया गया है कि किसी राजनीतिक दल को 'पॉश' अधिनियम के तहत आंतरिक शिकायत समिति बनाने की कानूनी जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके सदस्यों के बीच नियोक्ता-कर्मचारी का रिश्ता नहीं होता। इसलिए, इस मुद्दे को पूरी तरह से इसके दायरे में नहीं माना जाना चाहिए।
इस पर, सीजेआई गवई की अगुवाई वाली पीठ ने वरिष्ठ वकील को सलाह दी कि वे सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर करके केरल उच्च न्यायालय के फैसले को स्वतंत्र रूप से चुनौती दें।
इसके बाद उन्होंने जनहित याचिका वापस लेने का फैसला किया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और फिर याचिका को वापस लेने के आधार पर खारिज कर दिया गया।
पिछले साल दिसंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी ही याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन याचिकाकर्ता को निर्देश दिया था कि वे चुनाव आयोग से संपर्क करें, क्योंकि चुनाव आयोग ही मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने के लिए आंतरिक तंत्र स्थापित करने का निर्देश देने के लिए सक्षम प्राधिकारी है।
कोर्ट ने कहा था कि अगर याचिकाकर्ता की शिकायत का समाधान नहीं होता, तो वे कानून के अनुसार न्यायिक मंच पर जा सकते हैं।
नई जनहित याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता ने इस साल मार्च में चुनाव आयोग को एक पत्र भेजा था, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।
यह याचिका मांग करती है कि राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न से बचाव के लिए कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा (पॉश) अधिनियम, 2013 का पालन करना चाहिए। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया कि पॉश अधिनियम का दायरा बढ़ाकर राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं को शामिल किया जाए, ताकि राजनीतिक दल सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करने के लिए जवाबदेह हों और राजनीतिक दलों के साथ काम करने वाले लोगों को यौन उत्पीड़न से बचाया जा सके।
याचिका में केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के अलावा, कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, सीपीआई (एम), सीपीआई, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, नेशनल पीपल्स पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी को भी पक्षकार बनाया गया है।