Hindu Astrology Yoga: 'शूल योग' के दुष्प्रभावों से रक्षा करते हैं महादेव, ऐसे करें भोलेनाथ को प्रसन्न

श्रावण मास में शूल योग और शनिवार व्रत का विशेष महत्व, जानें पूजा विधि और उपाय।
'शूल योग' के दुष्प्रभावों से रक्षा करते हैं महादेव, ऐसे करें भोलेनाथ को प्रसन्न

नई दिल्ली:  श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि शनिवार को पड़ रही है। इस दिन भरणी नक्षत्र है और इसके साथ ही आज शूल योग का निर्माण भी हो रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह अशुभ योग है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित होते हैं। हालांकि, धर्म शास्त्र में कई समाधान भी बताए गए हैं।

पंचांग के अनुसार, इस दिन अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजे से शुरू होकर 12 बजकर 55 मिनट तक रहेगा और राहुकाल सुबह के 09 बजकर 01 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 44 मिनट तक रहेगा।

शूल योग, ज्योतिष में एक अशुभ योग माना जाता है, जिसमें सभी सात ग्रह तीन राशियों में स्थित होते हैं। इस योग में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित है क्योंकि इससे जातक को कष्टों का सामना करना पड़ता है। शूल का अर्थ है 'चुभने वाला शस्त्र', और इस योग में किया गया कोई भी कार्य, भले ही सफल हो जाए, जातक के जीवन में लंबे समय तक पीड़ा का कारण बन सकता है।

शूल योग का स्वामी राहु है और शिवजी राहु के बुरे प्रभावों को कम करने में मदद करते हैं। नियमित रूप से शिवजी की पूजा करने से शूल योग के बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है। प्रभाव को कम करने के लिए आप रोजाना शिव शिवजी पर जल चढ़ाएं और महामृत्युंजय का जाप करें। इसके साथ ही बेल पत्र चढ़ाने से भी भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। यदि किसी व्यक्ति का जन्म शूल योग में हुआ है तो शूल योग शांति पूजन करवाना धार्मिक दृष्टि से आवश्यक बन जाता है।

अग्नि पुराण के अनुसार, शनिवार का व्रत शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। श्रावण मास में पड़ने वाले शनिवार के दिन इस व्रत की शुरुआत करने का खास महत्व है। इसके अलावा, ये व्रत किसी भी शुक्ल पक्ष के शनिवार से शुरू किया जा सकता है। मान्यताओं के अनुसार, 7 शनिवार व्रत रखने से शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलती है और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। इसके साथ ही शनिदेव की विशेष कृपा भी मिलती है।

धर्मशास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि शनिदेव को कैसे प्रसन्न करना चाहिए। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें। इसके बाद शनि की प्रतिमा या शनि यंत्र रखें और शनि मंत्रों जैसे शं शनैश्चराय नम:, सूर्य पुत्राय नम: का जाप करें। फिर शनिदेव को स्नान करवाएं और उन्हें काले वस्त्र, काले तिल, और सरसों का तेल अर्पित करें और सरसों के तेल का दिया जलाएं। इसके बाद शनि चालीसा और कथा का पाठ भी करें।

पूजा के दौरान शनिदेव को पूरी और काले उड़द दाल की खिचड़ी का भोग लगाएं और आरती करें। मान्यता है कि पीपल के पेड़ पर शनिदेव का वास होता है। इसी कारण हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना और छाया दान करना (सरसों के तेल का दान) बहुत शुभ माना जाता है।

 

 

 

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