नई दिल्ली: देशभर में कई अलग-अलग तीर्थ स्थल मौजूद हैं, जहां दर्शन मात्र से ही जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं। सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक सबरीमाला मंदिर काफी प्रसिद्ध है।
यह मंदिर अपनी दीक्षा और कठोर तपस्या के लिए प्रसिद्ध है। यहां 41-दिवसीय व्रत (दीक्षा) होता है, जहां दीक्षा लेने वाले भक्त को 41 दिनों तक सात्विक भोजन, कठोर पहाड़ी यात्रा और ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है।
केरल में स्थापित सबरीमाला मंदिर का ब्रह्मचर्य पालन से गहरा नाता है। इस मंदिर में विराजमान भगवान अयप्पा आज भी मंदिर में बैठकर तपस्या में लीन हैं। पौराणिक कथाओं की मानें तो भगवान अयप्पा भगवान शिव और विष्णु के मोहिनी अवतार के पुत्र हैं। उन्हें हरिहर पुत्र के नाम से भी जाना जाता है।
अयप्पा एकमात्र ऐसे भगवान हैं, जिनमें शिव और विष्णु का अंश देखने को मिलता है। भगवान अयप्पा में दो शक्तियां निहित होने की वजह से उन्हें शांति और युद्ध दोनों का प्रतीक माना जाता है।
मान्यता है कि राक्षसी महिषी का वध करने के बाद भगवान अयप्पा ने सब कुछ त्याग कर ब्रह्मचार्य का पालन करने का प्रण लिया और जंगलों में कठोर तपस्या की थी।
भगवान अयप्पा के ब्रह्मचारी होने की वजह से ही मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं का आना वर्जित था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद महिलाओं को भी भगवान अयप्पा के दर्शन का अधिकार मिला।
सबरीमाला मंदिर को दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है। इस मंदिर में आने वाले की धर्म, जाति और वर्ग मायने नहीं रखता है। किसी भी वर्ग और जाति का पुरुष मंदिर में दीक्षा ले सकता है। मंदिर में सिर्फ भगवान अयप्पा के दर्शन से आशीर्वाद नहीं मिलता। माना जाता है कि शारीरिक और मानसिक तपस्या के बाद ही भगवान अयप्पा प्रसन्न होकर भक्त को आशीर्वाद देते हैं। मंदिर तपस्या और आस्था दोनों पर आधारित है।
सबरीमाला मंदिर में मकर संक्रांति के अंत में एक रहस्यमयी ज्योति भी जलाई जाती है, जिसके दर्शन के लिए लाखों की संख्या में भक्त मंदिर पहुंचते हैं। इस उत्सव को मकरविलक्कु कहते हैं। मकरविलक्कु उत्सव में पहाड़ी पर ज्योत जलाने के बाद भगवान अयप्पा के लिए जुलूस भी निकाला जाता है।
--आईएएनएस
