नई दिल्ली, 24 जून (आईएएनएस)। वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रेम, विलासिता और रिश्तों का ग्रह शुक्र को माना जाता है। शुक्र भौतिक सुख-सुविधाओं, विलासिता, प्रेम, अंतरंगता, आभूषण, जुनून, धन, दिखावट, कामुक संतुष्टि और जीवंतता का सूचक है।
ऐसे में यह मूल धारणा है कि 'पुरुष मंगल से हैं और महिलाएं शुक्र से हैं।' शुक्र देव श्वेत वर्ण के हैं। उनमें स्त्रीत्व का गुण अधिक है। इसके लिए ज्योतिष शुक्र देव को स्त्री ग्रह मानते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शुक्र या शुक्र ग्रह को राक्षसों का गुरु माना जाता है और उन्हें असुर गुरु कहा जाता है। हालांकि, उन्हें धन और खुशी का एक शुभ ग्रह माना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुक्र देव असुरों के गुरु थे और उन्हें मृत संजीवनी मंत्र का ज्ञाता माना जाता है। शुक्र देव को सौंदर्य और आकर्षण का देवता भी माना जाता है। शुक्र देव की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को धन वृद्धि के साथ-साथ ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
अगर आपकी कुंडली में शुक्र की स्थिति कमजोर है, तो यह आपके जीवन में संघर्ष की स्थिति निर्मित कर सकता है। ज्योतिषियों की मानें तो शुक्र देव वृषभ और तुला राशि के स्वामी हैं। वहीं, मीन राशि में उच्च के होते हैं। अतः मीन राशि के जातकों पर शुक्र देव की विशेष कृपा बरसती है। उनकी कृपा से जातक को जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं होती है। कुंडली में शुक्र की महादशा 20 वर्षों तक चलती है। शुक्र की अंतर्दशा तीन साल तीन महीने की होती है। शुक्र देव एक राशि में 25 दिनों तक रहते हैं।
खगोल विज्ञान के अनुसार, आसमान में चन्द्रमा के बाद अगर कोई सबसे चमकीली चीज है तो वो सिर्फ शुक्र ही है। ऐसे में शुक्र जिस भी जातक के जीवन में मेहरबान होते हैं उसका जीवन चमक उठता है।
ऐसे में स्कंद पुराण, शिव पुराण और काशी खंड में एक ऐसे शिवलिंग का वर्णन है जिसकी पूजा-अर्चना करने से शुक्र के सभी दोषों से मुक्ति तो मिलती ही है, साथ ही जातक का पूरा जीवन सुख, समृद्धि और खुशियों से भर जाता है। जातक को संतान का सुख मिलता है। शुक्र द्वारा स्थापित यह शुक्रेश्वर महादेव मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के पास माता अन्नपूर्णा के मंदिर के ठीक पीछे स्थित कालिका गली में अवस्थित है। मंदिर के पास ही शुक्र द्वारा खोदा गया कुआं आज भी है। उसे शुक्र कूप कहा जाता है। इस कूप के जल को पीने या उससे स्नान करने से ग्रह दोषों का निवारण होता है।
इसके साथ ही एक शुक्रेश्वर मंदिर भारत के असम राज्य में स्थित है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में लोग दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर गुवाहाटी शहर के पानबाजार इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट पर शुक्रेश्वर पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर को भगवान शिव के सबसे बड़े लिंगम और छठे ज्योतिर्लिंग लिंगम के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर का इतिहास संत शुक्र से जुड़ा है, जिन्होंने शुक्रेश्वर पहाड़ी पर एकांतवास किया था, जहां वह नियमित रूप से भगवान शिव का ध्यान और पूजा करते थे।
दैत्य गुरु शुक्राचार्य का कचेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के कोपरगांव में स्थित है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि ऋषि भृगु के पुत्र और असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने यहां साधना की थी। इसी वजह से कोपरगांव को शुक्राचार्य की कर्मभूमि भी कहते हैं। यह स्थान कचेश्वर मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भक्त यहां शिवलिंग पर जलाभिषेक कर के भोलेनाथ के साथ शुक्राचार्य की कृपा भी पा सकते हैं। मान्यताओं के मुताबिक, शुक्राचार्य ने मृतसंजीवनी की विद्या प्राप्त करने के लिए इस शिवलिंग की पूजा की थी। मुख्य मंदिर में गुरु शुक्राचार्य की मूर्ति और शिवलिंग मौजूद हैं। मुख्य मंदिर के बाहर नंदी की काले पत्थर की मूर्ति और नंदी के सामने कछुआ मौजूद है।
हिंदू देवता भगवान शुक्र को समर्पित कंजानूर शुक्रन मंदिर (जिसे अग्निश्वर मंदिर भी कहा जाता है) तमिलनाडु राज्य के कुंभकोणम से लगभग 18 किलोमीटर दूर कंजानूर के छोटे से शहर में स्थित है। अग्निश्वर के रूप में भगवान शिव की यहां पूजा की जाती है। यह मंदिर नवग्रह मंदिरों में से एक है जहां भगवान शुक्रन (शुक्र) की पूजा की जाती है। शुक्रन (शुक्र) समृद्धि और खुशी के देवता हैं। भगवान शुक्रन (शुक्र) की पूजा करने के लिए भक्त साल भर इस मंदिर में आते हैं। वे सफेद रंग के कपड़े और सफेद रंग के फूल चढ़ाते हैं और भगवान से शुक्र ग्रह के दोषों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।
--आईएएनएस
जीकेटी/