नई दिल्ली: आन्येज़े गोंजा बोयाजियू को पूरी दुनिया मदर टेरेसा के नाम से जानती है। मैसेडोनिया के स्कोप्जे में 26 अगस्त, 1910 को जन्मीं विश्व की महान मानवतावादी और भारत रत्न से सम्मानित मदर टेरेसा ने अपने जीवन को गरीबों, असहायों और बीमारों की सेवा में समर्पित कर दिया।
मदर टेरेसा ने 1950 में कोलकाता में 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की, जो आज भी जरूरतमंदों की सेवा में जुड़ी हुई है। उनके कार्यों ने लाखों लोगों के जीवन को रोशनी दी।
कोलकाता की झुग्गियों में कुष्ठ रोगियों, अनाथों और बेघरों की मदद के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया। उनकी सादगी, करुणा और निस्वार्थ सेवा ने उन्हें विश्व भर में सम्मान दिलाया।
1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया, और 2003 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से नवाजा।
मदर टेरेसा द्वारा दी गई शिक्षाएं आज के समय में भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा था, "हमें बड़े काम करने की जरूरत नहीं है, बस छोटे-छोटे कामों को बड़े प्यार से करना चाहिए।" उनकी यह सोच आज भी लोगों को प्रेरित करती है।
कोलकाता में 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' के मुख्यालय में उनकी जयंती के अवसर पर विशेष प्रार्थना सभाएं और सेवा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वहीं, देश भर में उनके अनुयायी और संगठन गरीबों को भोजन, कपड़े और चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराते हैं और विभिन्न संगठनों द्वारा देश भर में रक्तदान शिविर, मुफ्त चिकित्सा शिविर और शिक्षा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
हालांकि, मदर टेरेसा के कार्यों पर कुछ विवाद भी रहे। कुछ आलोचकों ने उनके संगठन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए, लेकिन उनकी निस्वार्थ सेवा और गरीबों के प्रति समर्पण को कोई नकार नहीं सकता। उनकी मृत्यु 1997 में हुई, लेकिन उनकी शिक्षाएं और मिशन आज भी जीवित हैं। 2016 में वेटिकन ने उन्हें 'संत' की उपाधि दी, जिसने उनके कार्यों को वैश्विक स्तर पर और सम्मान दिलाया।
आज भी कोलकाता में उनके स्मारक 'निर्मल हृदय' पर हजारों लोग श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं। आज के दौर में, जब दुनिया सामाजिक और आर्थिक असमानताओं से जूझ रही है, मदर टेरेसा का जीवन एक मिसाल है। उनकी विरासत हमें सिखाती है कि मानवता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।