नई दिल्ली: चंद्रग्रहण को लेकर पीतांबरा पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य विक्रमादित्य ने बताया कि यह एक खगोलीय घटना है। यह रविवार की रात को 9 बजकर 57 मिनट पर आरंभ होने जा रहा है। यह ग्रहण करीब साढ़े तीन घंटे का रहने वाला है। ग्रहण के समाप्त होने के बाद स्नान करना जरूरी है।
पीतांबरा पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य विक्रमादित्य ने आईएएनएस से खास बातचीत के दौरान बताया कि रविवार को रात को 9 बजकर 57 मिनट पर चंद्र ग्रहण आरंभ होने जा रहा है। कुंभ राशि में राहु के साथ चंद्रमा की जो युति बन रही है, उसमें यह ग्रहण काल बनेगा। करीब साढ़े तीन घंटे का यह ग्रहण रहने वाला है। यह विशेष समय पर आया है; श्राद्ध से पहले चंद्र ग्रहण और बाद में सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। इन दो ग्रहणों के बीच में 15 दिन का समय चल रहा है, यह बहुत सावधानी भरा है। इसमें कई ग्रहों के परिवर्तन का योग बन रहा है। आने वाले 40 दिनों में विश्व में कई प्रकार से उथल-पुथल होने की संभावना है।
पीठाधीश्वर आचार्य विक्रमादित्य ने बताया कि चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है। आकाश मंडल में जिस प्रकार ग्रहों का परिवर्तन होता है, उसके अनुसार सूर्य और चंद्रमा के बीच में होने से पृथ्वी पर जो छाया पड़ती है, उसके कारण ग्रहण होता है। इस ग्रहण का प्रभाव हर व्यक्ति और जीव पर पड़ता है। किसी पर सकारात्मक तो किसी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ग्रहणकाल भारतीय ज्योतिष गणना के अनुसार पर्व काल माना जाता है। इस दौरान भगवान के मंत्र जप, साधना और चिंतन के द्वारा पुण्य अर्जित कर सकते हैं।
चंद्र ग्रहण पर पीतांबरा पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य विक्रमादित्य कहते हैं कि ग्रहण के प्रभाव को राशियों के दृष्टिकोण से बहुत विस्तृत रूप से समझा जा सकता है। 12 राशियों में से प्रत्येक पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने कहा कि ग्रहण काल के बाद सबसे पहले स्नान करना चाहिए। ग्रहण रात में करीब डेढ़ बजे समाप्त होगा। कहा जाता है कि ग्रहण का दोष लगता है क्योंकि स्नान न करने पर सूतक काल व्याप्त रहता है। भारतीय संस्कृति स्नानमय संस्कृति है। शनि को उतारना है तो ग्रहण के बाद स्नान करना जरूरी है।