नई दिल्ली: भाई दूज के मौके पर गुरुवार को बाबा केदारनाथ के कपाट बंद कर दिए गए हैं। केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग और उत्तराखंड के चार धामों में से एक माना जाता है। अब 6 महीने तक बाबा भक्तों को दर्शन नहीं देंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाकी के 6 महीने बाबा की पूजा कहां होती है और वो किस स्थल को अपना दूसरा घर बनाते हैं?
केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग और उत्तराखंड के चार धामों में से एक माना जाता है, और अब 6 महीने शीतकाल में बाबा भक्तों को दर्शन नहीं देंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाकी के 6 महीने बाबा की पूजा कहां होती है और वो किस स्थल को अपना दूसरा घर बनाते हैं?
शीतकाल में बाबा केदार के द्वार बर्फबारी की वजह से बंद हो जाते हैं क्योंकि वहां इतनी बर्फबारी पड़ती है कि मंदिर तक पहुंच जाना और आध्यात्मिक गतिविधियों को कर पाना मुश्किल हो जाता है। पहाड़ पर बसे होने की वजह से सर्दियों में ऑक्सीजन की कमी भी हो जाती, इसलिए बाबा को दूसरा स्थान दिया जाता है, जो है ऊखीमठ। ऊखीमठ को भगवान का शीतकालीन घर कहा जाता है, जहां केदारनाथ के कपाट बंद होने के बाद बाबा की चलविग्रह पंचमुखी डोली कई जगहों से होकर यहां आती है।
ऊखीमठ में मौजूद ओंकारेश्वर मंदिर को दूसरा केदारनाथ भी कहा जाता है, जहां सर्दियों में भी भक्त दूर-दूर से बाबा के दर्शन के लिए आते हैं। आने वाले महीने बाबा ऊखीमठ से ही भक्तों को दर्शन देंगे। इस मंदिर का बनाव भी केदारनाथ मंदिर से काफी मिलता-जुलता है, जहां प्रमुख मंदिर का बनाव केदारनाथ मंदिर के जैसा ही है लेकिन मंदिर का प्रांगण बड़ा है जिसमें सुंदर नक्काशी से मंदिर की दीवारें सजी हुई हैं। 6 महीने बाद मंदिर को यहां से फिर से शुभ मुहूर्त में वापस केदारनाथ के लिए रवाना कर दिया जाता है।
सर्दियों में सिर्फ बाबा केदार ही अपना स्थल नहीं बदलते, बल्कि गंगोत्री, यमुनोत्री और बद्रीनाथ भगवान भी अपना स्थल बदलते हैं। गंगोत्री धाम को मुखवा में रखा जाता है, यमुनोत्री धाम को खरसाली में स्थापित किया जाता है, जबकि बाबा बद्रीनाथ को पांडुकेश्वर और ज्योर्तिमठ में स्थापित किया जाता है। बर्फबारी के समय चारों धामों को उनके दूसरे घर पर विराजमान किया जाता है।
बाबा केदारनाथ के कपाट बंद होने के बाद 6 महीने तक वहां पूजा-पाठ नहीं होती है, लेकिन फिर भी मंदिर के अंदर 6 महीने तक लगातार एक चमत्कारी दीया जलता रहता है। माना जाता है कि मंदिर में उस दीये के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती है, लेकिन फिर भी दीया निरंतर जलता रहता है। दीये के अपने आप जलने के पीछे का रहस्य आज तक बना हुआ है।