Justice Sanjay Kaul Interview: ‘सुप्रीम कोर्ट हर काम नहीं कर सकता है’, एसआईआर समेत कई मुद्दों पर बोले पूर्व जस्टिस संजय किशन कौल

पूर्व जस्टिस कौल बोले- कोर्ट नीतियां नहीं बनाता, हर काम के लिए अलग संस्था है
‘सुप्रीम कोर्ट हर काम नहीं कर सकता है’, एसआईआर समेत कई मुद्दों पर बोले पूर्व जस्टिस संजय किशन कौल

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस संजय किशन कौल ने भारतीय न्याय प्रणाली में सुधार और बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) समेत कई मुद्दों पर आईएएनएस से खास बात की। इस दौरान उन्होंने विपक्ष के चुनाव आयोग पर उठाए गए सवालों का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट हर काम नहीं कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस संजय किशन कौल ने विशेष गहन पुनरिक्षण (एसआईआर) के मुद्दे पर आईएएनएस से बातचीत में कहा, "मैं कहूंगा कि राजनीतिक लड़ाई या मतभेद को राजनीतिक तरीके से ही सुलझाना चाहिए। कोर्ट राजनीतिक समाधान के लिए ही नहीं है। कई बार चीजों का लीगल रैमीफिकेशन (कानूनी स्थिति या परिणाम) होता है और इसलिए एक साथ बहुत से लोग अपना पक्ष रखने के लिए आ जाते है और यहां सुप्रीम कोर्ट की दिक्कत ज्यादा होती है। सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना चाहिए कि उसे कौन से मामले सुनने हैं और कौन से नहीं। अलग-अलग कामों के लिए अलग संस्थाएं हैं, जैसे चुनाव आयोग, जो एक संवैधानिक संस्था है। उसमे अगर किसी मामले मे कानूनी सवाल है, तभी उसमे हस्तक्षेप होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट नीतियां नहीं बना सकता या चुनाव आयोग का काम नहीं कर सकता, लेकिन वह चेक एंड बैलेंस का काम करता है।"

विपक्ष द्वारा चुनाव आयोग पर सवाल उठाए जाने को लेकर पूर्व जस्टिस ने कहा, "ये राजनीतिक मतभेद हैं और आज की राजनीति में मध्यम मार्ग मुश्किल हो गया है, क्योंकि लोग अपने विचारों पर अड़े रहते हैं। फिर भी, चुनाव प्रणाली काम करती है, क्योंकि कई राज्यों में विपक्षी दल जीतते हैं, जिनमें बंगाल, तमिलनाडु और केरल शामिल हैं। बीजेपी भी सत्तारूढ़ पार्टी के रूप में जीतती है। यह नहीं कहा जा सकता कि 'मैं जीता तो ठीक, नहीं जीता तो गड़बड़ है।'

पूर्व जस्टिस संजय किशन कौल ने भारतीय न्याय प्रणाली में सुधार पर कहा, "चीफ जस्टिस के सुधार की बात में कोई निहित मकसद हो सकता है। सबसे बड़ी समस्या मामलों की पेंडेंसी है। इसका समाधान जजों की पर्याप्त नियुक्ति से हो सकता है। हाईकोर्ट में एक-तिहाई पद खाली हैं और यह संख्या बढ़ रही है। निचली अदालतों में भी यही हाल है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में यह समस्या नहीं है। संसद ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) लाया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया, जिसके कारण सरकार अब भी उसी मुद्दे में उलझी है। नियुक्ति के लिए समयसीमा तय की गई थी, जिसमें मैं भी शामिल था, लेकिन उसे लागू नहीं किया जा रहा। डेढ़ साल से यह मामला कोर्ट में भी नहीं उठा कि नियुक्तियां क्यों रुकी हैं।"

वहीं, संजय किशन कौल ने टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की हत्या को दुखद बताया। उन्होंने कहा, "इस तरह की घटनाएं समाज को गलत संदेश देती हैं। जैसे-जैसे समाज विकसित हो रहा है, वैसे-वैसे महिलाओं को शिक्षा और आजादी भी मिल रही है। लेकिन कुछ लोग, खासकर पुरानी सोच वाले, आज भी महिलाओं की स्वतंत्रता को पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाते। जब एक महिला अपनी मर्जी से कुछ करती है और लोग उसे गलत मानते हैं, तो यह समाज की सोच में कमी दिखाता है। आज लोग छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा कर हिंसा पर उतर आते हैं। बातचीत से समस्या सुलझाने की क्षमता कम हो गई है। यह एक सामाजिक समस्या है। इसे कंट्रोल करना जरूरी है। समाज में बदलाव होना चाहिए। महिलाओं को अपने तरीके से काम करने की आजादी मिलनी चाहिए, न कि किसी और की मर्जी से।"

 

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