मुंबई: भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों पर भारतीय मिसाइलें काल बनाकर बरसी। इस जवाबी कार्रवाई के बाद इजराइल के राजदूत रुवेन अजार ने भारत के समर्थन में ट्वीट कर दिया। उन्होंने कहा, इजराइल भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करता है। आतंकियों को पता होना चाहिए कि उनके जघन्य अपराधों से छुपाने की जगह नहीं है। यह बयान 50 साल पुरानी दोस्ती की याद दिलाता है। 1971 के युद्ध में इजराइल की गोल्डा मायर ने भारत की मदद की थी।
बात जुलाई 1971 की है। पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लाभाषी मुसलमानों पर हमले हो रहे थे। ये कोई और नहीं पाकिस्तान की आर्मी थी जो अपनी ही जनता पर जनरल यह्या खान के इशारे पर हमले कर रही थी। लाखों शरणार्थी भारत आए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मदद चाहिए थी। लेकिन अमेरिका ने तब भारत का साथ नहीं दिया। तब भारत अकेला था। तब मध्य पूर्व से एक अनजान सहायता ने भारत की मदद की।
गोल्डा मायर इजराइली प्रधानमंत्री थीं। वे दूरदर्शी थीं। इजराइल के पास हथियारों की कमी थी। भारत से इजराइल के औपचारिक संबंध भी नहीं थे। फिर भी मायर ने भारत की मदद की। उन्होंने ईरान जाने वाले हथियार भारत भेज दिए। हथियारों में मोर्टार और गोला-बारूद थे। यह गुप्त ऑपरेशन था। हथियार निर्माता श्लोमो जाब्लुडोविक्ज ने मदद की। मायर की एक शर्त थी। भारत औपचारिक संबंध बनाए। यह इच्छा 20 साल बाद पूरी हुई।
इंदिरा गांधी के सचिव पी.एन. हक्सर ने “आश्चर्यजनक छोटी सफलता” बताया। यह दस्तावेज नेहरू मेमोरियल म्यूजियम में आज भी मौजूद हैं। इजरायली हथियार भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी तक पहुंचे। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने हार मानी। इजराइल से संबंध जोखिम भरे थे। भारत को मुस्लिम आबादी का डर था। अरब देशों से तेल आपूर्ति प्रभावित हो सकती थी। लेकिन मायर ने इन रुकावटों को पार किया। यह सच्ची दोस्ती थी। 1992 में पीएम नरसिम्हा राव ने इजरायल के साथ संबंध मजूबत किए। दोनों देशों ने रक्षा, खुफिया और तकनीक में सहयोग किया। 1999 के कारगिल युद्ध में इजरायल ने साथ दिया। 2017 में पीएम मोदी इजराइल गए। यह पहली यात्रा थी।