मुंबई: महाराष्ट्र में 'हिंदी भाषा' पर राजनीतिक विवाद बढ़ता जा रहा है। मनसे और शिवसेना-यूबीटी की ओर से संयुक्त मार्च के ऐलान के बाद भारतीय जनता पार्टी ने पलटवार किया। भाजपा ने राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को आईना दिखाते हुए कहा कि वो ड्रामा कर रहे हैं।
भाजपा विधायक राम कदम ने कहा, "उद्धव ठाकरे की टोली का ड्रामा देखिए। फरवरी 2022 में जब उद्धव ठाकरे खुद मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने हिंदी भाषा को स्वीकार किया था। अब वो उसी भाषा का विरोध करते हुए सड़कों पर उतर रहे हैं।"
महाराष्ट्र सरकार में मंत्री उदय सामंत ने स्पष्ट किया कि हिंदी अनिवार्य नहीं है। हिंदी की सख्ती नहीं की है। उन्होंने उद्धव ठाकरे पर बड़े आरोप लगाए हैं और कहा, "पहले खुद उद्धव ठाकरे की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी। उस कमेटी में हिंदी अनिवार्य करने का फैसला लिया गया। जिन्होंने हिंदी सख्ती का प्रपोजल स्वीकार किया था, वो (उद्धव ठाकरे) आंदोलन कर रहे हैं।"
भाजपा नेता आशीष शेलार ने कहा, "उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री रहते हुए 2022 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत हिंदी को स्वीकार करने का काम किया। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर त्रिभाषा में हिंदी को शामिल किया था, ये उद्धव ठाकरे को ध्यान रखना चाहिए।"
आशीष शेलार ने पलटवार करते हुए कहा, "1968 में जब कांग्रेस की सरकार थी, तब राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई थी। उद्धव ठाकरे कांग्रेस के मित्र हैं, उनको पता होना चाहिए।"
भाजपा नेता ने राज ठाकरे को भी घेरा और कहा, "मनसे प्रमुख से कहना चाहता हूं कि 5वीं से 7वीं तक हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला कांग्रेस ने लिया था। उस समय उद्धव ठाकरे ने कुछ बोला नहीं था, जबकि हमने अनिवार्यता हटा दी। छात्र अपनी इच्छा से निर्णय कर सकता है।"
भाजपा को हिंदी विवाद पर महाराष्ट्र में अपने सहयोगियों का भी समर्थन मिल रहा है। शिवसेना-शिंदे गुट की नेता साइना एनसी ने विपक्ष के विरोध पर कहा, "ये सब सिर्फ बीएमसी चुनाव के लिए किया जा रहा है। दोनों ठाकरे भाई सिर्फ राजनीति के लिए ये सब कर रहे हैं।"
केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने कहा, "हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है और हिंदी का विरोध करने का मतलब संविधान का विरोध करना है।"
उन्होंने महाराष्ट्र के लोगों से अपील करते हुए कहा, "उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के दबाव में आकर कोई गलत फैसला नहीं लेना चाहिए।"