DMK Impeachment Move : 'लोगों का न्याय व्यवस्था से भरोसा उठ गया', जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग नोटिस पर बोलीं कनिमोझी

कनिमोझी ने जस्टिस स्वामीनाथन पर पक्षपात के आरोप, महाभियोग मांग तेज
'लोगों का न्याय व्यवस्था से भरोसा उठ गया', जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग नोटिस पर बोलीं कनिमोझी

दिल्ली: तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) की सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने गुरुवार को मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन पर महाभियोग चलाने के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने आरोप लगाया कि जस्टिस स्वामीनाथन के फैसले ने लोगों का न्याय व्यवस्था से विश्वास और भरोसा खत्म कर दिया है।

कनिमोझी करुणानिधि ने गुरुवार को आईएएनएस से बातचीत करते हुए कहा, "यह डीएमके है, जिसने कई विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर तमिलनाडु में हाईकोर्ट के जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ यह महाभियोग प्रस्ताव पेश किया है।"

उन्होंने कहा, "वजह यह है कि उन्होंने (जस्टिस स्वामीनाथन) लोगों का न्याय व्यवस्था से विश्वास और भरोसा खत्म कर दिया है। उन्होंने देश के संविधान और संविधान द्वारा आम लोगों को दिए गए वादों के खिलाफ काम किया है। हमने ऐसे कई उदाहरण दिए हैं जहां उनके फैसलों में पक्षपात दिखा है। कई मामले और घटनाएं हैं जिनमें जज को कुछ खास वकीलों और कुछ खास विचारधाराओं के प्रति पक्षपातपूर्ण पाया गया है, जो एक धर्मनिरपेक्ष देश में बिल्कुल गलत है।"

बता दें कि जस्टिस स्वामीनाथन ने पिछले दिनों एक फैसला सुनाते हुए तिरुपरनकुंद्रम की पहाड़ी पर पारंपरिक कार्तिगई दीपम जलाने की अनुमति दी थी। इस पहाड़ी पर एक मंदिर के अलावा एक दरगाह भी है। हालांकि, डीएमके ने जस्टिस स्वामीनाथन के फैसले का विरोध करते हुए जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की मांग की है।

मंगलवार को डीएमके ने लोकसभा स्पीकर को एक नोटिस सौंपा, जिस पर विपक्षी दलों के 100 से अधिक सांसदों ने हस्ताक्षर किए। डीएमके संसदीय दल की नेता कनिमोझी, पार्टी के लोकसभा नेता टीआर बालू, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को महाभियोग का नोटिस सौंपा।

महाभियोग नोटिस के अनुसार, मद्रास हाईकोर्ट के जज को हटाने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 217 के साथ अनुच्छेद 124 के तहत यह प्रस्ताव पेश किया गया था।

नोटिस में आरोप लगाया गया कि उनके आचरण ने न्यायिक निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं और उन पर एक वरिष्ठ वकील और एक खास समुदाय के वकीलों को अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया गया है। इसमें आगे दावा किया गया है कि कई फैसले राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित दिखे, जो संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का उल्लंघन है।

--आईएएनएस

 

 

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