नई दिल्ली: 27 जुलाई केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के देश के प्रति समर्पण भाव और योगदान को याद करने का दिन है। आजादी से कई बरस पहले 27 जुलाई को 'क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस' के रूप में पुलिस बल की स्थापना हुई थी, जिसे आजादी के बाद केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) नाम मिला। समृद्ध विरासत का सम्मान करते हैं और भारत की सुरक्षा और स्थिरता के लिए इसकी अटूट प्रतिबद्धता की सराहना करते हैं। इस बार सीआरपीएफ के 87वें स्थापना दिवस का जश्न मनाया जाएगा।
सीआरपीएफ का आदर्श वाक्य "सेवा और निष्ठा" है, जो कर्तव्य के प्रति बल की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 27 जुलाई 1939 को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल 'क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस' के रूप में अस्तित्व में आया। रियासतों के भीतर बढ़ती राजनीतिक उथल-पुथल और अशांति से निपटने के लिए 'क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस' की स्थापना की गई। इस पुलिस बल का निर्माण 1936 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मद्रास प्रस्ताव से काफी प्रभावित था, जिसमें एक मजबूत आंतरिक सुरक्षा तंत्र की जरूरतों पर जोर दिया गया।
अंग्रेजों से आजादी के बाद 'क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस' में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ। 28 दिसंबर 1949 को संसद ने एक अधिनियम को पारित किया, जिसके बाद 'क्राउन रिप्रेजेंटेटिव पुलिस' को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के रूप में नई पहचान मिली। इस विधायी अधिनियम ने सीआरपीएफ को केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र के तहत एक सशस्त्र इकाई के रूप में स्थापित भी किया। उस समय गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सीआरपीएफ के लिए एक बहुआयामी भूमिका की कल्पना की, इसके कामों को एक नए स्वतंत्र राष्ट्र की उभरती जरूरतों के साथ जोड़ा।
सीआरपीएफ ने दशकों से अटूट समर्पण के साथ भारत की आंतरिक सुरक्षा को कायम रखा है। देश के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में से एक सीआरपीएफ ने कई मौकों पर खुद को साबित किया। इसके सबूत 2001 का संसद अटैक और 2005 का अयोध्या हमला है, जिसे सीआरपीएफ ने नाकाम किया। सिर्फ देश के भीतर की सुरक्षा की बात नहीं, बल्कि सीआरपीएफ के जवानों ने 1959 में हॉट स्प्रिंग्स और 1965 में सरदार पोस्ट की लड़ाइयों समेत युद्ध के मैदानों में भारतीय सेना का बहादुरी से साथ दिया।
1959 हॉट स्प्रिंग्स संघर्ष भारत और चीन के बीच था। सितंबर 1959 में लद्दाख के हॉट स्प्रिंग्स में चीन ने उकसावे की कार्रवाई की थी।
हॉट स्प्रिंग इलाके के आसपास भारी संख्या में चीनी सैनिक जमा थे। सीआरपीएफ जवानों को चीन के कब्जे से चौकी मुक्त कराने के आदेश मिले थे। बहादुरी के साथ जवानों ने चीन के कब्जे से चौकी को मुक्त कराया, लेकिन इस बीच कुछ जवानों को चीनी फौज ने पकड़ लिया था। आईटीबीपी के डीएसपी करमसिंह के नेतृत्व वाली टुकड़ी को बाद में पता चला कि कुछ जवान गायब हैं। उन्होंने तलाश शुरू की और इसी बीच चीनी सैनिकों ने तलाश के लिए निकली टुकड़ी को घेर लिया था।
जवानों ने संख्या में बहुत कम होने के बावजूद बेहतर हथियारों से लैस चीनी सेना से अविश्वसनीय रूप से बहादुरी से मुकाबला किया। शून्य से भी नीचे के तापमान में भारी हथियारों से लैस चीनी सैनिकों के साथ लड़ाई में 10 जवान शहीद हुए थे। 21 अक्टूबर 1959 वह दिन था जब सैनिकों के इस दृढ़ दल को "हॉट स्प्रिंग्स" नामक स्थान पर स्वचालित हथियारों से लैस चीनी सैनिकों की भारी गोलाबारी का सामना करना पड़ा। इस शहादत के स्मरण में हर साल 21 अक्टूबर को 'पुलिस स्मृति दिवस' मनाया जाता है।
हॉट स्प्रिंग्स की जमा देने वाली ठंड से लेकर कच्छ के रण में सरदार पोस्ट के तपते रेगिस्तान तक, अपनी मातृभूमि के प्रति अटूट प्रेम और सर्वोच्च बलिदान देने की तत्परता ने हमारे बहादुर जवानों के छोटे-छोटे समूहों को दुश्मन का सामना करने, उनकी नापाक योजनाओं को विफल करने और अंत तक लड़ने के लिए प्रेरित किया।
1965 के शुरुआती महीनों में जब पाकिस्तान ने कच्छ के रण सीमा पर आक्रामक रुख अपनाया, तो सीआरपीएफ की दूसरी बटालियन की चार कंपनियों को सीमा चौकियां स्थापित करने का काम सौंपा गया। 8 और 9 अप्रैल की रात को अंधेरे की आड़ में पाकिस्तान की 51वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड के 3,500 जवानों की एक टुकड़ी, जिसमें 18वीं पंजाब बटालियन, 8वीं फ्रंटियर राइफल्स और 6वीं बलूच बटालियन शामिल थीं, उन्होंने हमारी सीमा चौकियों के खिलाफ "डेजर्ट हॉक" अभियान शुरू किया।
सरदार पोस्ट पर तैनात हेड कांस्टेबल रणजीत सिंह मशीन गन चला रहे थे, तभी उन्होंने अपने उत्तर में लगभग 50 से 100 गज की दूरी पर हलचल देखी। उन्होंने घुसपैठियों को ललकारा और जवाब में गोलियों की बौछार शुरू हो गई, जिससे पाकिस्तानी सेना को मोर्टार और 25 पाउंड के गोले दागने का संकेत मिला।
सरदार और टाक पोस्टों पर, जहां सीआरपीएफ की दूसरी बटालियन की चार कंपनियां तैनात थीं, एक ब्रिगेड की पूरी ताकत से हमला किया गया। पोस्टों पर तैनात जवानों ने अपने गोला-बारूद बचाकर रखे और आखिरी क्षण तक गोलीबारी रोके रखी, जिससे दुश्मन उनके करीब आ गया। इस भयानक सन्नाटे ने पाकिस्तानियों को यह विश्वास दिलाया कि पोस्ट पर तैनात सभी लोग गोलाबारी में मारे गए या घायल हो गए।
सरदार पोस्ट के कांस्टेबल शिव राम ने 600 गज की दूरी पर एक दुश्मन अवलोकन पोस्ट को तोपखाने और मोर्टार फायर का निर्देश देते हुए देखा। सूबेदार बलबीर सिंह ने तेजी से इस दुश्मन अवलोकन पोस्ट को खत्म करने के लिए सीआरपीएफ के जवानों को मोर्टार फायर का निर्देश दिया। जैसे ही हमलावर करीब आए, पोस्ट पर मौजूद सभी तीन मशीनगन सक्रिय हो गईं, जिससे आग की एक घातक बौछार शुरू हो गई और दुश्मन देश के सैनिक बेअसर हो गए। 14 हमलावर मारे गए और चार को जिंदा पकड़ लिया गया। एक क्षणिक झटके के बावजूद जब पोस्ट के उत्तर-पूर्व कोने में मशीन गन जाम हो गई, सीआरपीएफ कर्मियों ने जल्दी से फिर से संगठित होकर जवाबी हमला किया, जिससे दुश्मन को पीछे हटना पड़ा।
एक घंटे तक गोलीबारी चली, जिसके दौरान दुश्मन ने चौकी पर कब्जा करने के तीन प्रयास किए, लेकिन उन्हें भारी क्षति हुई। सीआरपीएफ कर्मियों की जवाबी कार्रवाई का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि दुश्मन अपनी संख्या और हथियारों की बढ़त के बावजूद दोबारा हमला करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
13 दिसंबर, 2001 को जब आतंकवादियों ने संसद भवन पर आत्मघाती हमला किया, तो सीआरपीएफ के बहादुर जवानों को एक कठिन परीक्षा का सामना करना पड़ा। सीआरपीएफ और आतंकवादियों के बीच लगभग 30 मिनट तक चली भीषण गोलीबारी में सभी 5 आतंकवादी मारे गए। इस मुठभेड़ के दौरान एक महिला कांस्टेबल ने असाधारण साहस और सूझबूझ का परिचय देते हुए अपने कर्तव्य का पालन करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया।
इसी तरह सीआरपीएफ ने अयोध्या हमले को नाकाम किया। 5 जुलाई 2005 को जब 5 आतंकवादियों ने अयोध्या में हमला किया, जवान बहादुरी से लड़े और उन्होंने आतंकवादियों के नापाक इरादों को विफल करते हुए सभी को ढेर कर दिया।