Brajesh Mishra First NSA : भारत के पहले एनएसए, जिन्होंने सुरक्षा और कूटनीति को दी नई दिशा

बृजेश मिश्रा: भारत के पहले एनएसए और वाजपेयी के रणनीतिक सलाहकार
बृजेश मिश्रा: भारत के पहले एनएसए, जिन्होंने सुरक्षा और कूटनीति को दी नई दिशा

नई दिल्ली: भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) का पद आज देश के सबसे शक्तिशाली पदों में से एक माना जाता है और वर्तमान एनएसए अजित डोभाल इसकी मिसाल हैं। लेकिन इस पद की नींव रखने और इसे रणनीतिक महत्व प्रदान करने वाले शख्स थे बृजेश मिश्रा। वे भारत के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान सचिव थे। वे काफी पावरफुल थे और उनके कार्यकाल ने भारत की सुरक्षा और कूटनीति को नई दिशा दी।

29 सितंबर 1928 को मध्य प्रदेश में जन्मे ब्रजेश मिश्रा एक राजनीतिक परिवार से थे। उनके पिता द्वारका प्रसाद मिश्रा मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और इंदिरा गांधी के करीबी सहयोगी थे। परिवार से ही उन्होंने राजनीति और कूटनीति की बारीकियां सीखी।

हालांकि, उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की नीतियां अधिक पसंद थीं। इसीलिए उन्होंने भाजपा का दामन भी थामा था।

1951 में भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) में शामिल होने के बाद मिश्रा ने अपने कूटनीतिक करियर की शुरुआत की। उन्होंने इंडोनेशिया में भारत के राजदूत और जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के पास भारत के स्थायी प्रतिनिधि के रूप में अपनी सेवाएं दीं।

विदेश मंत्रालय में सचिव के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद 1998 में वे वाजपेयी सरकार में प्रधान सचिव और भारत के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त हुए, जिसे उन्होंने मई 2004 तक संभाला। 1998 के पोखरण-II परमाणु परीक्षणों में उनकी केंद्रीय भूमिका थी।

जब कई देशों ने भारत के खिलाफ प्रतिबंधों की धमकी दी, तो मिश्रा ने अपने कूटनीतिक कौशल से वैश्विक मंच पर भारत का पक्ष मजबूती से रखा।

उन्होंने रूस का समर्थन हासिल किया और अमेरिका, चीन व यूरोपीय संघ की आलोचनाओं को निष्प्रभावी किया। इसके अलावा, वाजपेयी की ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा, पाकिस्तान और चीन के साथ संबंधों में सुधार, और अमेरिका के साथ रणनीतिक संवाद की शुरुआत में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

मिश्रा ने भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधि के रूप में भी वार्ताएं कीं। वाजपेयी के विश्वसनीय सलाहकार के रूप में उन्होंने संकटमोचक की भूमिका निभाई।

उन्होंने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति को एक मजबूत संरचना प्रदान की। उनकी दूरदृष्टि ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त बनाया, जो आज भी देश की सुरक्षा नीतियों का आधार है।

28 सितंबर 2012 को नई दिल्ली में दिल की बीमारी के कारण उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु को एक युग का अंत माना गया, लेकिन उनकी विरासत भारत की वैश्विक छवि में आज भी जीवित है।

 

 

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