नई दिल्ली: हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। बुधवार को पड़ने पर इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है। दृक पंचांग के अनुसार, 20 अगस्त को भाद्रपद माह का पहला बुध प्रदोष व्रत मनाया जाएगा।
त्रयोदशी तिथि दोपहर 1 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर 21 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगी। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 56 मिनट से रात 9 बजकर 7 मिनट तक है। इस दिन राहुकाल दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से 2 बजकर 2 मिनट तक रहेगा, जिसमें पूजा नहीं करनी चाहिए।
प्रदोष व्रत देवाधिदेव महादेव को अति प्रिय है। वहीं, बुधवार का दिन पड़ने से इस व्रत का संबंध भगवान शिव के साथ उनके पुत्र गणपति से भी जुड़ जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन पूजा करने से सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है, साथ ही सभी पाप नष्ट होकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। यह दांपत्य जीवन की समस्याओं को दूर करने में भी सहायक है।
पौराणिक ग्रंथों में प्रदोष व्रत के पूजन की विधि सरल तरीके से व्याख्यायित है। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर गंगाजल का छिड़काव करें और आटा, हल्दी, रोली, चावल, और फूलों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। कुश के आसन पर बैठकर भगवान शिव और गणपति की पूजा करें। शिवजी को दूध, जल, दही, शहद, घी से स्नान कराने के बाद बेलपत्र, माला-फूल, इत्र, जनेऊ, अबीर-बुक्का, जौं, गेहूं, काला तिल, शक्कर आदि अर्पित करें। इसके बाद धूप और दीप जलाकर प्रार्थना करें। गणपति को भी पंचामृत से स्नान कराएं और फिर सिंदूर-घी का लेप करें। तिलक लगाने के बाद दूर्वा, मोदक और सुपारी-पान, और माला-फूल चढ़ाएं।
विधि-विधान से पूजा-पाठ करने के बाद 'ओम गं गणपते नम:' और 'ओम नमः शिवाय' मंत्रों का जप करें।
प्रदोष काल (शाम 06:56 से 09:07) में पूजा और कथा का पाठ करना अति उत्तम माना जाता है। संध्या के समय पूजन करने के बाद बुध प्रदोष व्रत कथा भी सुनें। इसके बाद आरती करें और घर के सभी सदस्यों को प्रसाद देकर भगवान से सुख-समृद्धि की कामना करें। साथ ही ब्राह्मण और जरूरतमंद को अन्न दान करें। दूसरे दिन पारण करना चाहिए।