Asghar Wajahat Biography: हिंदी रंगमंच की शान है असगर वजाहत का नाटक ‘जिन लाहौर नइ वेख्या ओ जम्याइ नइ’

असगर वजाहत: साहित्य और रंगमंच में सौहार्द, व्यंग्य और संवेदनशीलता की अनमोल आवाज।
हिंदी रंगमंच की शान है असगर वजाहत का नाटक ‘जिन लाहौर नइ वेख्या ओ जम्याइ नइ’

नई दिल्ली:  जब भी भारत-पाकिस्तान विभाजन के दर्द और उसकी साहित्यिक अभिव्यक्ति की बात होती है, तो असगर वजाहत का नाम खुद ही जेहन में उभरता है। उनका नाटक ‘जिन लाहौर नइ वेख्या ओ जम्याइ नइ’ हिंदी रंगमंच का एक ऐसा मील का पत्थर है, जो 1947 के विभाजन की त्रासदी को न केवल गहरी संवेदनशीलता के साथ उकेरता है, बल्कि मानवता और सांप्रदायिक सौहार्द का एक शक्तिशाली संदेश भी देता है।

यह नाटक लाहौर की सांस्कृतिक समृद्धि और उससे जुड़ी भावनाओं का प्रतीक है, जो यह सिद्ध करता है कि धर्म और सीमाएं मानवीय रिश्तों को कभी विभाजित नहीं कर सकतीं। असगर वजाहत की यह रचना अपनी मार्मिक कहानी, प्रभावशाली संवादों और सार्वभौमिक अपील के कारण न केवल हिंदी रंगमंच की शान है, बल्कि विभिन्न भाषाओं में अनुवादित होकर वैश्विक दर्शकों के दिलों तक भी पहुंची है। उनकी लेखनी की यह विशेषता उन्हें हिंदी साहित्य और रंगमंच के एक अप्रतिम रचनाकार के रूप में स्थापित करती है।

5 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में जन्मे असगर वजाहत ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अपनी शिक्षा पूरी की, जहां हिंदी साहित्य के प्रति उनका प्रेम उभरकर सामने आया। यहीं से उनकी साहित्यिक यात्रा की नींव पड़ी, जिसने उन्हें हिंदी साहित्य और रंगमंच के एक प्रख्यात रचनाकार के रूप में स्थापित किया।

असगर वजाहत ने उपन्यास, नाटक, कहानी और आलोचना जैसी विभिन्न विधाओं में अपनी लेखनी का जादू बिखेरा। उनकी रचनाओं में सामाजिक मुद्दे, मानवीय रिश्ते और ऐतिहासिकता की छाप दिखाई देती है। वे अपनी लेखनी के जरिए न केवल आम जन की आवाज को प्रमुखता के साथ उठाते थे बल्कि उनसे जुड़ी समस्याओं पर भी बात करते हैं।

“जिन लाहौर नइ वेख्या ओ जम्याइ नइ”: यह उनका सबसे चर्चित नाटक है, जो 1947 के विभाजन की पृष्ठभूमि में सांप्रदायिक सौहार्द और मानवता की कहानी बयां करता है। यह नाटक एक बुजुर्ग महिला (माई) और एक विस्थापित सिख परिवार के बीच संबंधों को दर्शाता है, जो लाहौर की सांस्कृतिक और भावनात्मक समृद्धि को दर्शाता है। नाटक की भाषा में हिंदी, पंजाबी और उर्दू का मिश्रण है, जो लाहौर की मिश्रित संस्कृति को जीवंत करता है। इसकी वैश्विक लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका विभिन्न भाषाओं में न केवल अनुवाद हुआ बल्कि इसका विदेशी मंचों पर प्रदर्शन भी किया गया। इसके अलावा, इसे 2007 में एक टेलीफिल्म के रूप में भी प्रस्तुत किया गया था।

वजाहत की लेखन शैली में व्यंग्य, हास्य और गहरी संवेदनशीलता का समन्वय दिखाई देता है। उनके संवाद सरल लेकिन प्रभावशाली होते हैं, जो सामाजिक मुद्दों को सहजता से पेश करते हैं। उनकी रचनाएं पाठकों को न केवल भावनात्मक रूप से जोड़ती हैं, बल्कि सामाजिक चेतना और परिवर्तन के लिए भी प्रेरित करती हैं। उन्होंने ‘सात आसमान’ जैसा परिवार नाटक भी लिखा। साथ ही उपन्यास ‘कैसी आगी लगाई’, यात्रा-वृत्तांत ‘मेरी प्रिय यात्राएं’, ‘चलते तो अच्छा था’ को भी लिखा, जिन्हें खूब सराहा गया।

असगर वजाहत को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार और अन्य प्रतिष्ठित सम्मान शामिल हैं। असगर वजाहत को उनके नाटक महाबली के लिए ‘31वें व्यास सम्मान’ से सम्मानित किया जाएगा, जो 2019 में प्रकाशित हुआ था। उनकी रचनाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहा गया है।

वे जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रोफेसर रहे हैं और कई युवा लेखकों को अपनी लेखनी से प्रेरित किया है। इसके अतिरिक्त, वे फिल्म और टेलीविजन के लिए पटकथा लेखन में भी सक्रिय रहे हैं। उन्होंने फिल्म और टेलीविजन के लिए भी पटकथाएं लिखीं, जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है।

 

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