Mumbai Attack Eyewitness : 26/11 मुंबई आतंकी हमले के 17 साल पूरे, चश्मदीद मोहम्मद शेख ने सुनाई आपबीती

17 साल बाद भी 26/11 के चश्मदीदों की यादों में ज़िंदा है डर और दर्द
26/11 मुंबई आतंकी हमले के 17 साल पूरे, चश्मदीद मोहम्मद शेख ने सुनाई आपबीती

 

मुंबई, 26 नवंबर (आईएएनएस)। मुंबई हमले के बुधवार को 17 साल पूरे हो गए हैं। 26/11 हमले के चश्मदीदों ने कहा कि उस दिन को याद करते हुए मुझे आज भी रात को नींद नहीं आती।

चश्मदीद मोहम्मद तौफीक शेख ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से कहा, "17 साल हो गए हैं और मुझे आज भी रात को नींद नहीं आती। आज भी, मैं सुबह करीब पांच या छह बजे सोता हूं। आप मुझे जब भी बुलाएंगे, दिन हो या रात, मैं उठाऊंगा। वह रात अंधेरी थी बुधवार भी था और बहुत सारे लोग मारे गए थे, बच्चे, बूढ़े, हर कोई मर गया था। हर जाति और धर्म के लोग थे, उस समय कोई हिंदू, मुसलमान नहीं देख जा रहा था।"

उन्होंने कहा कि मैंने सात से आठ घायल लोगों को उठाया था। सही कहूं तो, मैं कम से कम तीन से चार लोगों को बचाने में कामयाब रहा। मैंने एक रेलवे स्टाफ मेंबर को भी मरने से बचाया। टिकट काउंटर पर, तीन या चार लोग खड़े थे और उन पर लोहे की रॉड से हमला किया जा रहा था। इसी तरह मैं पीछे से घायल हो गया। जब उन्होंने गालियां दीं, तो मुझे एहसास हुआ कि वे आतंकवादी थे। बाद में, सुबह पुलिस अधिकारियों ने मुझसे बात की और मुझे चाय दी।

मोहम्मद तौफीक शेख ने कहा कि न्याय होगा और जो लोग जिम्मेदार हैं उन्हें सजा मिलेगी। बाद में मुझे क्राइम ब्रांच ने बुलाया था और मैंने एक व्यक्ति की पहचान की थी। क्योंकि मैंने सिर्फ एक हमलावर को देखा था, इसलिए मैं सिर्फ उसी व्यक्ति का नाम बता सका था। इसके बाद फिर मुझे कोर्ट बुलाया गया और फोटो का इस्तेमाल करके एक टेस्ट पहचान परेड के जरिए उसकी पहचान करने के लिए कहा गया था।

चश्मदीद ने आगे बताया, "मैं रेलवे स्टेशन के पास मेडिकल कॉलेज के बाहर खड़ा था। मैं चाय के पैसे लेने आया था। ड्यूटी खत्म हो गई। मेरे सीनियर्स ने मुझे बताया कि बहुत भीड़ है और मुझसे कहा, ‘छोटू, बाहर रहो।’ तो मैं बाहर ही रहा। इंडिया-इंग्लैंड का मैच चल रहा था, और दीपावली की वजह से लोग त्योहारों में बिजी थे।"

26/11 मुंबई आतंकी हमलों में बची देविका रोटावन कहती हैं, "26/11 को 17 साल हो गए हैं, लेकिन मेरे लिए, वह रात आज भी वैसी ही लगती है। ऐसा नहीं लगता कि 17 साल बीत गए हैं। आज भी ऐसा लगता है जैसे कुछ ही पल पहले मैंने उस रात का सामना किया हो। मैं आज भी उसे देख सकती हूं, मैं आज भी अपने पैर में गोली के घाव को महसूस कर सकती हूं। उस रात का डर, वो रात, आज भी मेरे मन में गहराई से बैठा है। हर साल दूसरों के लिए बदलता है, लेकिन मेरे लिए, यह सिर्फ गिनती का एक हिस्सा है। जिन्होंने इसे झेला है, उनके लिए वह पल उसी दिन में जमा हुआ है।"

--आईएएनएस

 

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