नई दिल्ली, 7 अगस्त (आईएएनएस)। योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि मन, शरीर और आत्मा के सामंजस्य का प्रतीक है। हालांकि, योग की शुरुआत से पहले भी कुछ अभ्यास उसके महत्व को और भी बढ़ा सकते हैं। ऐसे ही एक अभ्यास का नाम 'प्रार्थना मुद्रा' है, जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए उत्तम है बल्कि मानसिक शांति भी देता है।
प्राचीन योग प्रार्थना, "योगेन चित्तस्य पदेन वाचां, मलं शरीरस्य च वैद्यकेन..." में मुनि पतंजलि को नमस्कार करते हुए योग के त्रिविध लाभों चित्त, वाणी और शरीर की शुद्धि का उल्लेख है।
प्रार्थना मुद्रा, जिसे प्रणामासन कहा जाता है, योग की शुरुआत में किया जाने वाला एक सरल लेकिन शक्तिशाली आसन है। यह योग अभ्यास का आधार है, जो मन और शरीर को एकाग्र करता है।
आयुष मंत्रालय के सामान्य योग प्रोटोकॉल के अनुसार, प्रत्येक योग की शुरुआत प्रार्थनापूर्ण मनोदशा से होनी चाहिए, जो आध्यात्मिक और स्वास्थ्य लाभों को बढ़ावा देती है।
प्रार्थना मुद्रा का अभ्यास करना बेहद सरल है। इसके अनुसार, दोनों पैरों को मिलाकर सीधे खड़े हों या सुखासन, पद्मासन मुद्रा में बैठें। दोनों हाथों को हृदय के सामने नमस्कार मुद्रा में जोड़ें। इसके बाद आंखें बंद करें और गहरी और शांत तरीके से सांस लें। कुछ क्षणों तक सांस पर ध्यान केंद्रित करें। धीरे-धीरे आंखें खोलें और सामान्य सांस लेते हुए मुद्रा को समाप्त करें।
प्रार्थना मुद्रा का अभ्यास भले ही बेहद सरल है, लेकिन इसके कई लाभ हैं। प्रार्थना मुद्रा शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर कई लाभ प्रदान करती है। यह आसन तनाव को कम करता है और मन को शांत रखता है। नमस्कार मुद्रा में हाथों को हृदय चक्र के पास जोड़ने से ऊर्जा का संतुलन होता है, जिससे एकाग्रता बढ़ती है। यह रक्त संचार को बेहतर करता है और मांसपेशियों को आराम देता है, जिससे योग के अन्य आसनों के लिए शरीर तैयार होता है।
प्रार्थना मुद्रा योग का एक अभिन्न अंग है। इसके नियमित अभ्यास से आत्मविश्वास, भावनात्मक स्थिरता और आंतरिक शांति में वृद्धि होती है। यह मुद्रा योग के आध्यात्मिक पहलू को भी मजबूत करती है, जिससे व्यक्ति जीवन में संतुलन और सकारात्मकता का अनुभव करता है।
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