नई दिल्ली, 19 सितंबर (आईएएनएस)। सहजन, जिसे ड्रमस्टिक या मोरिंगा के नाम से भी जाना जाता है, भारत की धरती पर उगने वाला एक साधारण-सा पेड़ है, लेकिन इसके औषधीय गुण इसे असाधारण बनाते हैं। इसे पूरी दुनिया में 'मिरेकल ट्री' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसकी पत्तियां, फलियां, फूल, बीज और छाल सभी किसी न किसी औषधीय गुण से भरपूर हैं।
आयुर्वेद में सहजन का उपयोग प्राचीन काल से विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता रहा है। यह पेड़ न केवल स्वाद बढ़ाने वाला है, बल्कि सेहत की सुरक्षा का भी बड़ा साधन है।
सहजन को कफ-नाशक और वातहर माना गया है। यह शरीर में जमा विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है। इसकी पत्तियां और फलियां पाचन को दुरुस्त रखने, रक्त को शुद्ध करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक हैं।
सहजन की खासियत यह है कि इसमें अन्य सब्जियों और फलों की तुलना में कई गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, इसमें संतरे की तुलना में सात गुना अधिक विटामिन सी और गाजर से चार गुना अधिक विटामिन ए पाया जाता है। इसके अलावा, इसमें दूध से ज्यादा कैल्शियम और केले से अधिक पोटैशियम होता है। यही वजह है कि सहजन को 'ट्री ऑफ लाइफ' भी कहा जाता है।
सहजन में एंटी-कैंसर गुण भी पाए जाते हैं। सहजन का पाउडर या बीजों का सेवन शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालकर रक्त शुद्धिकरण करता है। इसके अतिरिक्त, यह शरीर को एनर्जी देने और थकान दूर करने में भी कारगर है। सहजन का नियमित सेवन पाचन तंत्र को मजबूत करता है, ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखता है और वजन घटाने में भी मदद करता है। यही नहीं, इसमें मौजूद विटामिन बी6 मस्तिष्क को सक्रिय रखने और मानसिक स्वास्थ्य सुधारने में भी सहायक है।
आयुर्वेद में सहजन के कई घरेलू नुस्खों का उल्लेख मिलता है। सहजन की पत्तियों का रस प्रतिदिन 1-2 चम्मच लेने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और मौसमी बीमारियों से बचाव होता है। सहजन की फलियों की सब्जी खाने से पाचन शक्ति मजबूत होती है और ब्लड शुगर नियंत्रित रहता है।
वहीं, सहजन की पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर मालिश करने से दर्द और सूजन में राहत मिलती है। इसके अलावा, सहजन का काढ़ा गले की खराश और खांसी-जुकाम जैसी समस्याओं में बहुत उपयोगी है। सहजन की पत्तियों का पेस्ट त्वचा पर लगाने से मुंहासे और अन्य त्वचा रोगों में लाभ मिलता है।
--आईएएनएस
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