नई दिल्ली, 4 सितंबर (आईएएनएस)। भारत में 1 से 7 सितंबर तक 'राष्ट्रीय पोषण सप्ताह 2025' मनाया जा रहा है। यह हमें स्वस्थ आहार और पोषण के महत्व के प्रति जागरूक करता है। यह सप्ताह हमें याद दिलाता है कि संतुलित और पौष्टिक आहार न केवल हमारी शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए जरूरी है, बल्कि यह विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और उनके होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गर्भावस्था एक ऐसा समय है, जब मां और बच्चे दोनों के लिए सही पोषण सुनिश्चित करना अनिवार्य होता है, क्योंकि यह मां के स्वास्थ्य को बनाए रखने और शिशु के समुचित विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आईएएनएस ने गाइनेकोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. मीरा पाठक से बातचीत की। उन्होंने गर्भावस्था के दौरान पोषण की आवश्यकताओं और जंक फूड के दुष्प्रभावों के बारे में बात की। उनका कहना है कि गर्भवती महिलाओं को अपने आहार में पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करना चाहिए और जंक फूड से बचना चाहिए ताकि मां और बच्चे दोनों स्वस्थ रहें।
डॉ. मीरा पाठक ने कहा कि गर्भावस्था के दौरान, शरीर में भ्रूण के विकास के कारण कई बदलाव आते हैं। इस समय बच्चे की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ पोषक तत्वों की अतिरिक्त मात्रा की जरूरत होती है। सबसे पहले कैलोरी की बात करें, तो इसका विशेष ध्यान रखना जरूरी है। यदि गर्भवती महिला बहुत अधिक कैलोरी लेती है, तो उसे गर्भकालीन मधुमेह या उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएं हो सकती हैं। अगर कैलोरी की मात्रा कम रही, तो बच्चे का जन्म के समय वजन कम हो सकता है, मां को थकान, सुस्ती, नींद अधिक आना या वजन घटने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। पहले यह कहा जाता था कि गर्भावस्था में दो लोगों के बराबर खाना चाहिए, लेकिन यह सही नहीं है। सामान्य रूप से एक सामान्य महिला को 2,000 कैलोरी की जरूरत होती है, लेकिन गर्भावस्था में पहले तीन महीनों में 100 अतिरिक्त कैलोरी की आवश्यकता होती है, जो एक स्वस्थ नाश्ते या छोटे भोजन से पूरी हो सकती है। दूसरे तिमाही में यह आवश्यकता बढ़कर लगभग 350 कैलोरी हो जाती है।
उन्होंने बताया कि विटामिन सी के फायदे भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं और यह आयरन के अवशोषण को बेहतर करता है। विटामिन सी नींबू, संतरा, टमाटर और आंवला जैसे खाद्य पदार्थों में पाया जाता है। इसके बाद कैल्शियम और विटामिन डी की आवश्यकता भी बढ़ जाती है, क्योंकि इस समय बच्चे की हड्डियां बन रही होती हैं। ये दूध, दही, पनीर, तिल, अंडे और मछली जैसे खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं। प्रोटीन की मात्रा भी सामान्य से अधिक होनी चाहिए, क्योंकि यह बच्चे के मांसपेशियों और ऊतकों के विकास में मदद करता है। प्रोटीन दाल, राजमा, छोले, अंडे और पनीर में पाया जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि ओमेगा-3 फैटी एसिड की भी बहुत जरूरत होती है, जो बच्चे के मस्तिष्क और आंखों के विकास में सहायक होता है। यह अखरोट, अलसी, चिया बीज और मछली में पाया जाता है। फोलिक एसिड भी अहम है, क्योंकि यह जन्म दोषों को रोकने में मदद करता है और पालक, चुकंदर, नींबू, संतरा जैसे खाद्य पदार्थों में मिलता है। विटामिन बी12 बच्चे और मां के तंत्रिका तंत्र के विकास और कार्य में सहायता करता है, जो दूध, दही, अंडे, मछली और मांस में पाया जाता है। जिंक भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और नट्स, बीज और साबुत अनाज में मिलता है। इसके अलावा, फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ और सब्जियों का सेवन भी जरूरी है। सलाद, साबुत अनाज और रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट से परहेज करना चाहिए, क्योंकि गर्भावस्था में कब्ज, सूजन और पाचन संबंधी समस्याएं आम हैं, जिनमें फाइबर मदद करता है। ये सभी पोषक तत्व और कैलोरी गर्भवती महिला के लिए सामान्य महिला से अधिक आवश्यकता होती है, ताकि मां और बच्चे दोनों स्वस्थ रहें।
डॉ. मीरा ने कहा कि यदि गर्भावस्था के दौरान मां कुपोषित रहती है, तो इसका मां और बच्चे दोनों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। मां का वजन घटने लगता है, जिसके साथ-साथ उसे थकान, आलस्य, अत्यधिक नींद, पैरों में सूजन, चक्कर आना, घबराहट और हड्डियों में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा, मां को एनीमिया और प्रीएक्लेमप्सिया जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। बच्चे पर इसका असर यह होता है कि उसका जन्म के समय वजन कम हो सकता है, वह शारीरिक रूप से कमजोर हो सकता है, और उसके शरीर व मस्तिष्क का विकास धीमा हो सकता है। ऐसे बच्चों में भविष्य में मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी बीमारियों का जोखिम भी बढ़ जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि गर्भवती महिला यदि जंक फूड जैसे चिप्स, तले हुए खाद्य पदार्थ, अत्यधिक शर्करायुक्त पेय या कोल्ड ड्रिंक्स का सेवन करती है, तो इन खाद्य पदार्थों में कैलोरी की मात्रा बहुत अधिक होती है। ये कैलोरी ऊर्जा तो प्रदान करती हैं, लेकिन इन्हें 'खाली कैलोरी' कहा जाता है, क्योंकि इनमें पोषक तत्व नहीं होते, जो शरीर को पोषण प्रदान करें। इन खाद्य पदार्थों में रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और शर्करा की मात्रा अधिक होती है, जिससे मां में मोटापे, सिजेरियन डिलीवरी, और जटिल प्रसव की संभावना बढ़ जाती है। उच्च शर्करा के कारण गर्भावस्था में मधुमेह या इंसुलिन प्रतिरोध का खतरा भी बढ़ता है। इनमें नमक और अस्वास्थ्यकर वसा की अधिकता के कारण उच्च रक्तचाप और प्री-एक्लेमप्सिया का जोखिम बढ़ जाता है।
उन्होंने आगे जानकारी दी कि इसके अलावा, इनमें मौजूद एडिटिव्स और प्रिजर्वेटिव्स मां और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक हो सकते हैं। जंक फूड में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती है, जिससे मां को कमजोरी और पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, क्योंकि इनमें फाइबर नहीं होता। बच्चे पर इसका प्रभाव यह पड़ता है कि अत्यधिक शर्करा और नमक के कारण बच्चे का वजन बढ़ सकता है, जिससे उच्च जन्म वजन वाला शिशु पैदा हो सकता है। पोषक तत्वों की कमी के कारण बच्चे के मस्तिष्क विकास पर असर पड़ सकता है, जिससे बुद्धि स्तर कम होने और हृदय रोगों की संभावना बढ़ सकती है।
डॉ. पाठक ने आगे कहा कि हमारा पारंपरिक भारतीय आहार, जिसमें रोटी, सब्जी, दाल, चावल, रायता, छाछ, लस्सी, सलाद, और मौसमी फल शामिल हैं, अत्यधिक पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, और खनिजों की उच्च मात्रा होती है। कुछ लोग पारंपरिक आहार में गुड़ के लड्डू, खजूर, अनार, तिल के लड्डू, और सूखे मेवे शामिल करते हैं, जो प्रोटीन और विटामिन से समृद्ध होते हैं। हालांकि, पारंपरिक आहार सप्लीमेंट्स का स्थान नहीं ले सकता, और न ही सप्लीमेंट्स प्राकृतिक खाद्य स्रोतों का स्थान ले सकते हैं।
--आईएएनएस
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