प्रियंगु रखे आपकी सेहत का ख्याल, त्वचा और पेट की बीमारियों में है खास

नई दिल्ली, 12 जून (आईएएनएस)। आयुर्वेद में कई पौधे अपने औषधीय गुणों के लिए जाने जाते हैं। इनमें से एक है प्रियंगु, जिसे हिंदी में बिरमोली या धयिया भी कहते हैं। यह पौधा गुणों से भरपूर होता है और इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं।

चरक संहिता के मुताबिक प्रियंगु को मुख्य रूप से वात, पित्त, और कफ दोषों को संतुलित करने के लिए उपयोगी माना गया है। प्रियंगु का वैज्ञानिक नाम कैलिकारपा मैक्रोफिला वाहल है। अंग्रेजी में इसे सुगंधित चेरी या ब्यूटी बेरी कहा जाता है।

भारत की विभिन्न भाषाओं में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। संस्कृत में इसे वनिता, प्रियंगु, लता, शुभा, सुमङ्गा के नाम से जाना जाता है। हिंदी में बिरमोली, धयिया के नाम से, बंगाली में मथारा के नाम से, मराठी में गहुला के नाम से, तमिल में नललु के नाम से, मलयालम में चिमपोपिल के नाम से, गुजराती में घंऊला के नाम से और नेपाली में इसे दयालो के नाम से जाना जाता है।

आयुर्वेद के मुताबिक प्रियंगु का उपयोग पेट दर्द, दस्त, पेचिश और यूटीआई के इलाज में किया जाता है। यह त्वचा के रोगों जैसे कि खुजली, लालपन और फोड़े-फुंसियों में भी लाभकारी है। प्रियंगु किन-किन बीमारियों के लिए औषधि के रूप में काम करता है इसके बारे में जानने के लिए सबसे पहले औषधीय गुणों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

चरक संहिता के मुताबिक प्रियंगु वातपित्त से आराम दिलाने वाला, चेहरे की त्वचा की रंगत को निखारने में मददगार, घाव को जल्दी ठीक करने में मदद करता है। दांतों की बीमारियों के इलाज में भी प्रियंगु का उपयोग अत्यंत लाभकारी है। प्रियुंग,त्रिफला और नागरमोथा को मिलाकर तैयार किए गए चूर्ण को दांतों पर रगड़ने से शीताद (मसूड़ों से जुड़ा रोग) में राहत मिलती है।

खानपान में असंतुलन के कारण होने वाले रक्तातिसार और पित्त अतिसार में शल्लकी, तिनिश, सेमल, प्लक्ष छाल तथा प्रियंगु के चूर्ण को मधु और दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है। इसके अलावा प्रियंगु के फूल और फल का चूर्ण अजीर्ण, दस्त, पेट दर्द और पेचिश में भी कारगर होता है।

आयुर्वेद के अनुसार प्रियंगु के पत्ते, फूल, फल और जड़ सबसे अधिक औषधीय गुणों से युक्त होते हैं। किसी भी रोग की स्थिति में इसका प्रयोग करने से पूर्व आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।

--आईएएनएस

एनएस/एएस

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