'पादहस्तासन' एक योगी की तपस्या का फल, इसमें छिपा है जीवन का अद्भुत मंत्र

पादहस्तासन: प्राचीन योग जो शरीर, मन और चेतना को संतुलित करने में करता है मदद।
'पादहस्तासन' एक योगी की तपस्या का फल, इसमें छिपा है जीवन का अद्भुत मंत्र

नई दिल्ली: भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर योग आज विश्व स्तर पर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का पर्याय बन चुका है। इस समृद्ध परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है पादहस्तासन योग। पादहस्तासन को संस्कृत में "पाद" (पैर) और "हस्त" (हाथ) से जोड़कर समझा जाता है, जो योग की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।

इस आसन में साधक अपने हाथों से पैरों को छूने या पकड़ने का प्रयास करता है, जिससे शरीर का ऊपरी हिस्सा नीचे की ओर झुकता है। प्राचीन भारतीय योग परंपरा में पादहस्तासन का विशेष स्थान है और इसे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।

पादहस्तासन को हठयोग की परंपरा में शामिल किया गया है, जो शरीर की ऊर्जा (प्राण) को संतुलित करने और कुंडलिनी जागरण में सहायक माना जाता है। इस आसन का अभ्यास साधक को पृथ्वी तत्व से जोड़ता है, क्योंकि इसमें सिर को जमीन की ओर लाया जाता है। सिर को नीचे झुकाने की क्रिया अहंकार को कम करने और मन को शांत करने की प्रक्रिया मानी जाती है। प्राचीन ऋषियों का मानना था कि नियमित अभ्यास से साधक का मन ध्यान और समाधि की ओर अग्रसर होता है।

योगियों का मानना था कि यह आसन रीढ़ के आधार में स्थित मुलाधार चक्र को उत्तेजित करता है, जिससे आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह ऊपर की ओर बढ़ता है। यह प्रक्रिया साधक को उच्च चेतना की ओर ले जाती है, जो योग के अंतिम लक्ष्य मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है।

प्राचीन मान्यता के अनुसार, पादहस्तासन सूर्य नमस्कार का एक हिस्सा रहा है, जो सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करने और शरीर में प्राणशक्ति को बढ़ाने के लिए किया जाता था। योगियों का मानना था कि यह आसन मणिपुर चक्र (नाभि चक्र) को सक्रिय करता है, जो आत्मविश्वास, पाचन शक्ति और ऊर्जा का केंद्र है। साथ ही, यह स्वाधिष्ठान चक्र (तेज चक्र) को संतुलित कर भावनात्मक स्थिरता प्रदान करता है।

पादहस्तासन हठयोग की प्राचीन परंपरा का हिस्सा है, जिसका उल्लेख हठयोग प्रदीपिका और घेरंड संहिता जैसे ग्रंथों में मिलता है। प्राचीन मान्यताओं में इसे "जीवन शक्ति" को बढ़ाने वाला आसन माना गया, जो शरीर की नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालता है।

एक प्राचीन कथा के अनुसार पादहस्तासन का अभ्यास एक योगी ने तब शुरू किया था, जब उसने देखा कि प्रकृति में पेड़ और पौधे हवा के साथ लचीलापन दिखाते हैं। इस लचीलेपन से प्रेरित होकर उसने इस आसन को विकसित किया, ताकि मनुष्य भी प्रकृति की तरह लचीला और संतुलित बन सके। यह कथा पादहस्तासन के प्रकृति से गहरे जुड़ाव को दर्शाती है।

--आईएएनएस

 

 

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