Nomophobia Test : सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी ने विकसित किया 'नोमोफोबिया' की पहचान करने वाला नया मनोवैज्ञानिक टेस्ट

नोमोफोबिया का स्तर पहचानने के लिए तैयार हुआ खास साइकोलॉजिकल टेस्ट
राजकोट: सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी ने विकसित किया 'नोमोफोबिया' की पहचान करने वाला नया मनोवैज्ञानिक टेस्ट

राजकोट: गुजरात के राजकोट स्थित सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग के रिसर्च स्कॉलर्स ने एक ऐसा 'नो मोबाइल फोन फोबिया' यानी 'नोमोफोबिया' साइकोलॉजिकल टेस्ट तैयार किया है, जो बताएगा कि आपका बच्चा या आप खुद नोमोफोबिया से पीड़ित हैं या नहीं।

अगर कोई मोबाइल की बैटरी खत्म होने, नेटवर्क कमजोर होने और फोन छीनने पर बेचैन हो जाता है, तो यह नोमोफोबिया के लक्षण हो सकते हैं। इस टेस्ट के जरिए इन लक्षणों का आसानी से पता लगाया जा सकता है।

यूनिवर्सिटी ने इस फॉर्मूले का कॉपीराइट भी हासिल कर लिया है, जिससे बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस टेस्ट के जरिए न सिर्फ नोमोफोबिया डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों की पहचान और काउंसिलिंग की जा सकेगी, बल्कि उन्हें मोबाइल की लत से छुटकारा दिलाने में भी मदद मिलेगी।

सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर योगेश जोगसन ने बताया कि हमने भारत में रहने वाले छात्रों के लिए एक पेपर-पेंसिल परीक्षा तैयार की है और इस परीक्षा को एक तरह की मान्यता मिल गई है। इसका कॉपीराइट भारत सरकार से मिल गया है।

असिस्टेंट प्रोफेसर धारा दोशी ने बताया कि 14 से 34 वर्ष आयु वर्ग के लोगों में 'नो मोबाइल फोन फोबिया' यानी मोबाइल फोन न होने पर वे किस तरह की मानसिक स्थिति व बेचैनी अनुभव करते हैं, इसका आकलन करने के लिए एक पेपर-पेंसिल टेस्ट विकसित किया गया है। यह टेस्ट बहुत सारे छात्रों और पीएचडी शोधार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा। खासतौर पर 'नोमोफोबिया' यानी फोन न होने पर होने वाली बेचैनी और घबराहट से बचने के लिए इसमें कई वैज्ञानिक उपाय व तकनीकें उपलब्ध हैं।

इस बारे में सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी की शोध छात्रा उन्नति देसाई ने कहा कि नोमोफोबिया यानी 'नो मोबाइल फोन फोबिया' नामक एक मनोवैज्ञानिक टेस्ट का निर्माण किया गया है। इस टेस्ट के माध्यम से युवाओं में नोमोफोबिया का स्तर कितना है, इसका सटीक मापन किया जा सकता है।

--आईएएनएस

 

 

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