नस्य पद्धति: सर्दी से बचाव के साथ निखरेगी चेहरे की खूबसूरती, ये तेल फायदेमंद

नई दिल्ली, 23 नवंबर (आईएएनएस)। सदियों में नाक में रूखेपन की समस्या रहती है। बच्चों से लेकर बड़ों तक में नाक और कान में रूखापन, प्रदूषण से सांस लेने में परेशानी और छाती में बार-बार कफ बनने की तकलीफें देखी जाती हैं। आयुर्वेद में इन सभी समस्याओं का एक ही हल बताया गया है, वह है नस्य पद्धति।

नस्य आयुर्वेद चिकित्सा की पुरानी पद्धति है। इसका इस्तेमाल सदियों से आयुर्वेद के पंचकर्म में होता है। पंचकर्म शरीर को शुद्ध करने का तरीका होता है। इसमें पांच चरण वमन, विरेचन, बस्ती, नस्य और रक्तमोक्षण शामिल हैं। शीत ऋतु में नस्य पद्धति की मदद से प्रदूषण और शीत ऋतु में होने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है। पहले जानते हैं कि नस्य विधि क्या है। नस्य का सीधा मतलब है नाक से औषधि का प्रवेश। नाक के द्वारा अगर औषधि डाली जाती है तो ये सिर, कान, आंख, त्वचा, बाल और गले तक को सुरक्षा प्रदान करती हैं।

आयुर्वेद में कहा गया है “नासा हि शिरसो द्वारम्, यानी नाक के माध्यम से की गई देखभाल पूरे शरीर में जीवन शक्ति को जगाती है। नस्य विधि के लिए सरसों के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। सरसों का तेल छाती में जमे कफ को कम करता है, बंद नाक को खोलता है, सिर दर्द में आराम देता है और सर्दी लगने पर शरीर को अंदर से गर्म भी रखता है। इसके लिए रात के समय सरसों के तेल की दो-दो बूंदों को नाक में डाली जाती है।

अणु तेल से भी नस्य विधि को किया जा सकता है। यह तेल कई जड़ी बूटियों को मिलाकर तैयार किया जाता है। अणु के तेल के उपयोग से माइग्रेन की समस्या कम होती है, बाल झड़ना कम होते हैं, नींद न आने की समस्या कम होती है, आंखों की रोशनी बढ़ती है और त्वचा में निखार आता है। आयुर्वेद में अणु तेल को रात में इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।

नस्य विधि को आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही करें और इसे करने के लिए सही तेल का चुनाव भी मायने रखता है।

--आईएएनएस

पीएस/वीसी

Related posts

Loading...

More from author

Loading...