महिलाओं में क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन से कमजोरी और हृदय रोग का खतरा : अध्ययन

नई दिल्ली, 5 अगस्त (आईएएनएस)। एक नए अध्ययन के अनुसार क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन महिलाओं में कमजोरी, सामाजिक असमानता और हृदय रोग (सीवीडी) के बढ़ते जोखिम से जुड़ी हो सकती है।

यह अध्ययन कम्युनिकेशंस मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें 37 से 84 वर्ष की आयु की 2 हजार से अधिक महिलाओं के ब्लड सैंपल में 74 इन्फ्लेमेशन-संबंधी प्रोटीन का विश्लेषण किया गया। शोध में यह समझने की कोशिश की गई कि इन्फ्लेमेशन कैसे कमजोरी, सामाजिक रूप से वंचित क्षेत्रों में रहने और हृदय रोग के जोखिम से संबंधित है।

शोधकर्ताओं ने 10 ऐसे प्रोटीन की पहचान की, जो कमजोरी और सामाजिक रूप से वंचित क्षेत्रों में रहने, दोनों से जुड़े हैं। इनमें से चार प्रोटीन (टीएनएफएसएफ14, एचजीएफ, सीडीसीपी1 और सीसीएल11, जो कोशिका संचार, वृद्धि और गति में शामिल हैं) हृदय रोग के बढ़ते जोखिम से भी संबंधित पाए गए। विशेष रूप से सीडीसीपी1 प्रोटीन का हृदय संबंधी समस्याओं (जैसे धमनियों का संकरा होना या अवरुद्ध होना) से गहरा संबंध पाया गया।

ये निष्कर्ष बताते हैं कि कुछ प्रोटीन सामाजिक असमानता, उम्र बढ़ने और हृदय रोग के बीच बायोलॉजिकल लिंक का काम कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने इन परिणामों को एक अलग समूह की महिलाओं पर भी देखा, ताकि यह सुनिश्चित हो कि निष्कर्ष कई आबादी में लागू होते हैं।

किंग्स कॉलेज लंदन के ट्विन रिसर्च एंड जेनेटिक एपिडेमियोलॉजी विभाग में रिसर्च एसोसिएट डॉ. यू लिन ने अध्ययन के बारे में बताया। उन्होंने बताया, "हमने ब्लड में कई इन्फ्लेमेशन-संबंधी प्रोटीन की जांच की, ताकि यह समझ सकें कि कमजोरी और सामाजिक असमानता हृदय रोग को कैसे प्रभावित करती हैं। इन प्रोटीन से हमें जोखिम कारकों के बीच एक साझा जैविक मार्ग का पता चला। हम सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी कमजोरियों से जुड़े बायोलॉजिकल मार्कर्स की पहचान करके, इन जोखिम कारकों के बीच एक संभावित साझा मार्ग का पता लगाने में सक्षम हुए।"

किंग्स कॉलेज लंदन में मॉलिक्यूलर एपिडेमियोलॉजी की सीनियर लेक्चरर डॉ. क्रिस्टीना मेन्नी ने बताया, "कमजोरी, सामाजिक असमानता और हृदय रोग अक्सर एक साथ देखे जाते हैं, लेकिन इनके बीच बायोलॉजिकल लिंक पूरी तरह समझा नहीं गया था। हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि सामाजिक तनाव इन्फ्लेमेशन को बढ़ावा दे सकता है, जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है।"

उन्होंने आगे बताया कि यदि ये निष्कर्ष और पुष्ट होते हैं, तो इन्फ्लेमेशन कम करने वाली चिकित्सा और सामाजिक असमानता को कम करने वाली नीतियां बना से हृदय रोग को रोका जा सकता है। ये प्रोटीन बायोमार्कर के रूप में भी काम कर सकते हैं, जिससे डॉक्टर हृदय रोग के जोखिम वाले लोगों की पहचान कर सकें।

यह अध्ययन चिकित्सा और सामाजिक नीतियों के संयोजन से कमजोर आबादी में हृदय रोग के जोखिम को कम करने की दिशा में एक प्रभावी कदम उठाने का सुझाव देता है।

--आईएएनएस

एमटी/केआर

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