आयुर्वेद दिवस अब राष्ट्रीय पर्व से बढ़कर विश्व स्वास्थ्य आंदोलन बन गया है- सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर

नई दिल्ली, 21 अक्टूबर (आईएएनएस)। सीएसआईआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस कम्युनिकेशन एंड पॉलिसी रिसर्च (सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर) में मुख्य वैज्ञानिक डॉ. नरेश कुमार ने कहा कि आयुर्वेद दिवस अब राष्ट्रीय पर्व से बढ़कर विश्व स्वास्थ्य आंदोलन बन गया है।

डॉ. नरेश कुमार ने यह बात आयुर्वेद दिवस समारोह के दौरान कही। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद का प्रचार और उसका प्रयोग अब केवल भारत तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि पूरी दुनिया में तेजी से फैल रहा है। यह प्राचीन चिकित्सा पद्धति अब एक वैश्विक स्वास्थ्य आंदोलन के रूप में उभर रही है।

आयुर्वेद प्राकृतिक जीवन और स्थिरता पर आधारित है, जिससे शरीर और मन दोनों का संतुलन बना रहता है। इस समारोह के अवसर पर बताया गया कि आयुर्वेद सिर्फ बीमारी दूर करने का तरीका नहीं है, बल्कि एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीने का मार्ग भी है।

साथ ही, इस कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय पहल 'स्वस्तिक' का भी जश्न मनाया गया। बता दें कि 'स्वस्तिक' का मकसद पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक नजरिए से समझाकर समाज तक पहुंचाना है, ताकि लोगों को सही और प्रमाणित जानकारी मिल सके।

डॉ. नरेश कुमार ने इस मौके पर कहा, ''आयुर्वेद के चिकित्सकों और शोधकर्ताओं को गलत जानकारी फैलने से रोकना चाहिए। आयुर्वेदिक दवाओं में मिलावट जैसी गलत प्रथाओं का भी विरोध करना जरूरी है। आयुर्वेदिक दवाइयां मानकीकृत और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित होनी चाहिए। उनका सही ढंग से प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए, ताकि आम जनता के बीच जागरूकता बढ़े और लोग सही जानकारी के आधार पर आयुर्वेदिक उपचार को अपनाएं।''

कार्यक्रम में नई दिल्ली के केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान के डॉ. किशोर पटेल ने कहा, "आज की जीवनशैली और बढ़ता तनाव बीमारियों का मुख्य कारण हैं। इसलिए, आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुसार सही और संतुलित पोषण, सावधानी से खाना खाना और नैतिक जीवन जीना बहुत जरूरी है। इन नियमों को अपनाकर मनुष्य पूरी तरह से स्वस्थ रह सकता है।"

सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के प्रशासन नियंत्रक राजेश कुमार सिंह रोशन ने आयुर्वेद के इतिहास और इसके विकास पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्राचीन चिकित्सक आचार्य नागार्जुन के योगदान को याद करते हुए बताया कि आयुर्वेद एक समग्र और व्यापक स्वास्थ्य प्रणाली है, जो अब विश्व स्तर पर भी मान्यता पा रही है।

कार्यक्रम में प्रसिद्ध जैव रसायनशास्त्री और सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की पूर्व निदेशक रह चुकीं प्रोफेसर रंजना अग्रवाल ने कहा कि भारत की वैज्ञानिक विरासत प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विज्ञानों का एक अनूठा मिश्रण है। उन्होंने डिजिटल युग में गलत जानकारी फैलने की समस्या को लेकर चिंता जताई। उनका कहना था कि पारंपरिक ज्ञान को सही तरीके से समझाना, वैज्ञानिक तरीके से जांचना और उसे स्कूल-विश्वविद्यालयों में पढ़ाना बहुत जरूरी है, ताकि लोग भ्रमित न हों।

पहले आयुर्वेद दिवस धनतेरस के दिन मनाया जाता था, जो भगवान धन्वंतरि के सम्मान में होता है। लेकिन चंद्र कैलेंडर पर आधारित होने के कारण यह तारीख हर साल बदलती रहती थी। इसलिए आयुष मंत्रालय ने 23 सितंबर को स्थायी रूप से आयुर्वेद दिवस के रूप में घोषित किया है। इससे इस दिन को देश और दुनिया भर में आसानी से मनाया जा सकेगा और लोग इसमें ज्यादा संख्या में भाग ले सकेंगे।

--आईएएनएस

पीके/एएस

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