लदंन: पृथ्वी की आंतरिक संरचना में उसके सबसे अंदर के हिस्से यानि सतह से 29000 किलोमीटर नीचे का भाग क्रोड़ कहलता है। वैज्ञानिक यह पता लगा चुके हैं कि क्रोड़ लोहे और निकल से बना है। इस क्रोड़ की हमारे ग्रह के विकास में बड़ी भूमिका रही है और आज भी इसके और इसकी ऊपरी परत मेंटल से अंतरक्रिया होती है और उसके प्रभाव सतह तक दिखाई देते हैं।
प्रयोगशाला में हुए प्रयोगों से पता चला है कि अब क्रोड़ के लोहे में ‘जंग लगने का प्रभाव’ हो सकता है जो कि सतह की एक सामान्य प्रक्रिया है। जंग लगने की प्रक्रिया पृथ्वी की सतह पर बहुत साधारण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया से बने पदार्थ को भी जंग कहते हैं जो एक लाल-भूरे रंग का उत्पाद होता है। यह तब बनता है जब लोहा हवा की नमी या ऑक्सीकृत पानी के संपर्क आता है और रासायनिक प्रक्रिया से लोहा आयरन ऑक्साइड में बदल जाता है।
शोध में यह पाया गया है कि क्रोड़ में मौजूद लोहा भी इस प्रक्रिया से गुजर सकता है। यह अध्ययन एडवांसिंग अर्थ एंड स्पेस साइंस में प्रकाशित हुआ है। प्रयोग में दर्शाया गया है कि जब लोहा नमी से, यानि पानी या उसके किसी हाड्रोऑक्सिल स्वरूप वाले खनिज से मिलता है लाखों वायुमंडलीय दाब से वह आयरन परऑक्साइड मं बदल जाता है जिसमें पाइराइट खनिज के जैसी ही सरंचना होती है जो कि जंग लगने का द्योतक होता है। इस प्रयोग ने वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया है क्योंकि जिस दबाव में उन्होंने यह प्रयोग किया वह हमारी पृथ्वी के अंदर के निचले मेंटल के हालात से मेल खाता है। इस शोध ने पृथ्वी की आंतरिक परतों के बारे में नई दृष्टि देने का काम किया है और अब इससे वैज्ञानिकों को क्रोड़ और मेंटल के बीच की सीमा के बारे फिर से धारणा बनानी होगी।
रिपोर्ट मे कहा गया है कि यह जंग पृथ्वी के अंदर निचले मेंटल में चल रहे गहरे जल चक्र और अल्ट्रालो वेलोसिटी जोन (यूएलवीजेड) की रहस्यमयी उत्पत्ति पर प्रकाश डाल सकता है। ये जोन पृथ्वी की क्रोड़ के ऊपर छोटे और पतले इलाके होते हैं जो भूकंपीय तरंगों को काफी हद तक धीमा कर देते हैं। इससे पृथ्वी के इतिहास की ग्रेट ऑक्सीडेशन ईवेंट की पहेली के भी कई सवालों के जवाब मिल सकते हैं।
महान ऑक्सीकरण घटना पृथ्वी के इतिहास में ऐसी घटना है जब वायुमंडल और उथले महासागरों में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत ज्यादा ही बढ़ गई थी। करीब 2.5 से 2.3 अरब साल पहले अचानक हुई इस घटना ने पृथ्वी के बहुत से अवायवीय जीवन को नष्ट कर दिया था। इसे महाविनाश की घटना भी कहा जाता है। लेकिन इसी के कारण पृथ्वी पर आज के जीवों के अनुकूल हालात बने थे।
वैज्ञानिकों उम्मीद है कि उन्हें हालात के बारे में बेहतर जानकारी ज्वालामुखी से निकलने वाले गुबार के जरिए मिल सकती है। इस नए नजरिए से अब शोध और अवलोकन पृथ्वी की आंतरिक स्थितियों के बारे में ज्यादा जानकारी मिल सकेगी। क्रोड़ और मेंटल की सीमा दो अलग अलग सरंचनाओं की परतों के बीच है जो अलग ही तरह के भूकंपीय संकेत जमा कर रही होगी। प्रयोग दर्शाते हैं जंग लगने से भूंकपीय और संपीड़न तरंगों की गति को काफी धीमा करने का कारण बनेगी। अगर जंग की यह परत तीन से पांच किलोमीटर भी मोटी हुई तो इससे क्रोड़ की जंग को पहचाना जा सकेगा।
फिर भी वैज्ञानिक अभी उस ऑक्सीकरण घटना का कारण नहीं जान सके हैं जिसकी वजह से जंग लग रही है। पृथ्वी के इतने अंदर के हिस्सों की जानकारी निकालना पहले ही बहुत मुश्किल काम है, लेकिन शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि आगे होने वाले अध्ययनों में इसके और ज्यादा प्रमाण मिल सकेंगे।