वाशिंगटन: क्या दूसरे ग्रहों पर भी आकाश नीला ही दिखाई देता होगा। अगर नहीं तो वहां कैसा रंग दिखता होगा और वहां के वायुमंडल की भी वही प्रणाली होती होगी। इस तरह की जिज्ञासा लोगों में रहती है। पृथ्वी की बात करें तो पृथ्वी का वायुमंडल बहुत घना नहीं है। लेकिन इसे किसी भी तरह से विरल भी नहीं कहा जा सकता है। यह बहुत सारी गैसों से बना है और ऊंचाई पर जाते जाते यह घनत्व कम भी होता जाता है। इसमें ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और पानी की वाष्प के अलावा कई और तरह की गैसें भी होती हैं। लेकिन उनकी मात्रा काफी कम है। यह वायुमडंल में गैसों का मिश्रण ही जो उसे रंग प्रदान करने का काम करता है। पृथ्वी के वायुमंडल की गैसें सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरणों में नीले रंग की किरणों को इधर उधर ही फैलाने की कोशिश करती हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। लेकिन बाकी रंगों की किरणों वायुमंडल के गैसों के बीच में से पार निकल जाती हैं। इसी वजह से पृथ्वी पर आकाश हमें नीला दिखाई देता है।एक सवाल यह उठता है कि क्या दूसरे ग्रहों में भी नीला वायुडमंल होता है।
विज्ञान में इसका सीधा जवाब है हां। हमारे सौरमंडल के दो बड़े बर्फीले ग्रह नेप्चूयन और यूरेनस दोनों ही नीले रंग के दिखाई देते हैं। लेकिन उनके शेड्स अलग हैं। यानि इन दोनों ग्रहों के वायुमडंल हमारे ग्रह के वायुमडंल से अलग तरह के नीले रंग के होते हैं और इनके पीछे की वजह से यहां के वायुमडंल में बड़ी मात्रा में मौजूद मीथेन गैस होती है। ऐसा नहीं है कि पृथ्वी पर मीथेन नहीं है। यह गैस भी पृथ्वी पर है और बहुत कम भी नहीं है। लेकिन ज्यादा मात्रा में नहीं है। यूरेनस में मीथेन गैस की एक पूरी की पूरी परत मौजूद है। और इसी परत के कारण वहां का वायुमंडल थोड़ा नीला दिखाई देता है। और मजेदार बात यह है कि नेप्च्यून तो दूर से भी थोड़ा नीला दिखाई देता है।वहीं शनि ग्रह का वायुमडंल अलग ही रंग होता है।
शनि के उच्च वायुमडंल में अमोनिया की बर्फ के क्रिस्टल इसे पीला रंग के होने का आभास देते हैं। वहीं गौर करने वाली बात यह भी है कि यूरेनस के वायुमडंल में भी अमोनिया होता है। इसी वजह वह पूरी तरह से नीला ना दिखकर हलका सा हरा रंग मिला हुआ नीला दिखाई देता है। गुरु ग्रह की कहानी कुछ अलग है। वहां का खास वायुमडंल भूरा और नारंगी पट्टियों का आभास देता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी वजह वहां के वायुमंडल में मौजूद फॉस्फोसर और सल्फर के तत्व हो सकते हैं और इतना ही नहीं कुछ जटिल हाइट्रोकार्बन पदार्थों की भी इसमें भूमिका हो सकती है।इसके अलावा शुक्र ग्रह सौरमंडल का ऐसा ग्रह है जहां का वायुमंडल सबसे ज्यादा घना है। इसकी वजह से केवल 20 प्रतिशत ही प्रकाश उसकी सतह पर पहुंच पाता है। सोवियत वेनेरा प्रोब की तस्वीरें सुझाती हैं कि शुक्र ग्रह का आकाश नारंगी होता है। वहां सूर्य के सबसे पास का ग्रह बुध का कोई वायुमंडल नही नहीं है।
अभी तक सौरमंडल से बाहर के बाह्यग्रहों के वायुमंडल का गहराई से अध्ययन नहीं हो सका है। फिर भी खोजे गए बाह्यग्रहों वायुमंडल या तो बहुत पतले होते हैं या फिर वह किसी अन्य पदार्थों के बने होते हैं। इन पर गहराई से अध्ययन के लिए शक्तिशाली टेलीस्कोप से जानकारी मिलने की उमीद है। बता दें कि पृथ्वी पर आसमान का नीला रंग बहुत आकर्षित करता है। इतना ही नहीं समय समय पर इसमें बदलाव भी देखने को मिलते हैं। बताया जाता है कि यह रंग हमें हमारी पृथ्वी के वायुमडंल की वजह से दिखाई देता है।