वॉशिंगटन: चंद्रमा पर इंसानों की बस्ती की कल्पना के साकार होने का समय आ गया है। साइंस फिक्शन फिल्मों के मामले में अक्सर यह बात देखने को मिली है। जैसे, जेम्स बांड के जो गैजेट कभी हमें हवा हवाई लगते थे, वह हकीकत में तब्दील हो चुके है। फिल्म ‘डाइ हार्ड’ में खलनायक पूरे शहर के इंटरनेट को हैक कर, शहर का नियंत्रण अपने कब्जे में ले लेता है। देखने पर यह एक कपोल कल्पना लगी, लेकिन कुछ ही सालों बाद वाकई में यही स्थिति बन चुकी है।
इसी तरह 2015 में एक फिल्म ‘द मार्शियन’ आई थी। इस फिल्म में एक अंतरिक्ष यात्री मंगल ग्रह पर अकेला फंस जाता है। फिर वह वहां जिंदा रहने के लिए तमाम तरह की कोशिशें करता है। उसमें से एक कोशिश होती खाना पैदा करने की। इसके लिए वह मंगल पर वहां की मिट्टी और दूसरी चीजों को साथ मिलाकर खेत तैयार करता है और उस पर आलू उगाता है। 2015 में जब यह फिल्म आई तो देखने वालों को यह कहानी के हिसाब से अच्छा लगी, लेकिन वह इसे हकीकत के तौर पर नहीं ले पाए। लेकिन शायद दर्शकों को यह पता नहीं होगा कि वैज्ञानिक इसी तरह की सोच पर काम कर रहे हैं। फिल्म आने के ठीक 7 साल बाद वैज्ञानिकों ने अपनी सोच को साकार करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा दिया है।
पहली बार वैज्ञानिकों ने नासा के अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों की लाई चांद की मिट्टी पर पौधा उगाने में सफलता हासिल की है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं को इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि चांद की धूल भरी मिट्टी में कुछ उग भी सकता है या नहीं। उन्होंने इसे एक प्रयोग के तौर पर लिया कि अगर अगली पीढ़ी में कोई चांद पर जाता है तो क्या वहां पर कुछ उगा सकता है। जो परिणाम सामने आए, उसने वैज्ञानिकों को चौंका दिया।
यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर साइंस के वैज्ञानिक फर्ल और उनके साथियों ने यह सफलता हासिल की है। उन्होंने नील आर्मस्ट्रांग और उनके साथी मूनवॉक के दौरान जो चांद की मिट्टी एकत्र करके लाए थे, उस पर अरेबिडोपिस्स थालियाना प्रजाति के पौधे को उगाने में सफलता हासिल की है। जैसे ही वैज्ञानिकों ने इसके बीज चांद की मिट्टी मे डाले सभी अंकुरित हो गए। बस दिक्कत यह थी कि चांद की मिट्टी के रूखेपन और दूसरी कमियों की वजह से पौधे धीरे-धीरे बढ़े और जल्दी ही मर भी गए। लेकिन उनके अंकुरण ने उम्मीद की किरण जगाई है। वैज्ञानिकों का कहना है, ‘हो सकता है कि कॉस्मिक विकिरण और चांद पर पड़ने वाली सौर हवा की वजह से यहां की मिट्टी पर ऐसा असर पड़ा हो। अपोलो 11 जो मिट्टी लेकर आए हैं। वह अरबों साल पहले पैदा हुई होगी। जो विकास के लिए बहुत कम मददगार थी।’ हालांकि वैज्ञानिक इसे चांद पर कुछ उगाने की दिशा में एक बड़ा कदम मान रहे हैं। अगला कदम चांद पर जाकर इस काम को अंजाम देना होगा।
6 लोग अपोलो से करीब 342 किलो चांद की चट्टानें और मिट्टी अपने साथ लेकर आए थे। चूंकि यह प्रयोग में सीधे नहीं आ सकती थी, इसलिए इसके साथ शोधकर्ताओं ने धरती पर ज्वालामुखी राख से बनी नकली मिट्टी का प्रयोग किया था। नासा ने पिछले साल इसमें से फ्लोरिडा विश्वविद्यालय को 12 ग्राम मिट्टी दी थी, जिस पर मई में रोपण का प्रयोग शुरू हुआ था। अब फ्लोरिडा के वैज्ञानिकों का उम्मीद है कि वे इस साल के आखिरी तक चांद की मिट्टी को रिसाइकिल कर लेंगे। दूसरे पौधों को उगाने से पहले इस पर एक बार फिर उसी पौधे के बीज को उगाकर देखा जाएगा।