Dadasaheb Phalke Award : जब मन्ना डे को दादासाहब फाल्के अवार्ड के लिए मिला था नामांकन, ऐसा रहा म्यूजिक करियर

मन्ना डे को 2007 में मिला दादासाहब फाल्के पुरस्कार
30 सितंबर 2007 : जब मन्ना डे को दादासाहब फाल्के अवार्ड के लिए मिला था नामांकन, ऐसा रहा म्यूजिक करियर

मुंबई: 30 सितंबर 2007 का दिन भारतीय संगीत और सिनेमा के लिए एक यादगार दिन था। इस दिन देश के प्रख्यात पार्श्व गायक मन्ना डे को दादासाहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया था। यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है, और मन्ना डे की इस उपलब्धि ने उनकी संगीत की यात्रा को एक नया मुकाम दिया। उनकी आवाज ने कई दशकों तक लाखों दिलों को छुआ और उनके गाने आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।

मन्ना डे का जन्म 1 मई 1919 को कोलकाता में हुआ था। उनका असली नाम प्रबोध चंद्र डे था। वे एक पारंपरिक बंगाली परिवार से थे, जहां संगीत की परंपरा रही थी। बचपन से ही मन्ना डे को संगीत का शौक था, लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वह एक वकील बनें। पर मन्ना डे ने अपनी इच्छा के मुताबिक संगीत को ही अपना जीवन बना लिया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक संगीत शिक्षा अपने मामा कृष्ण चंद्र डे और उस्ताद दाबिर खान से हासिल की।

मन्ना डे ने अपने करियर की शुरुआत 1942 में फिल्म 'तमन्ना' से की थी। उस वक्त उन्होंने सुरैया के साथ एक लोकप्रिय गीत गाया था, जिससे उन्हें पहली बार फिल्मी दुनिया में पहचान मिली। इसके बाद उन्होंने कई भाषाओं में गाने गाए, जिनमें हिंदी के साथ-साथ बंगाली, गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड़ और असमिया भी शामिल हैं। मन्ना डे की खासियत यह थी कि वे शास्त्रीय संगीत को बहुत अच्छी तरह समझते थे और अपने गानों में उसे बखूबी पिरोते थे। उन्होंने जटिल गीतों को भी बहुत सहजता से गाया।

उनकी आवाज की गहराई ने उन्हें फिल्मी संगीत में एक अलग पहचान दिलाई। कई बड़े संगीतकारों ने उन्हें अपनी पहली पसंद माना। उनके गाने न केवल शास्त्रीय बल्कि रोमांटिक, लोकगीत, भजन और पॉप संगीत के रूप में भी बेहद लोकप्रिय हुए। मन्ना डे ने 'एक चतुर नार', 'प्यार हुआ इकरार हुआ', 'ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे', 'चुनरी संभाल गोरी' जैसे कई शानदार गीत गाए, जो आज भी सुनने वालों के दिलों को छू जाते हैं।

मन्ना डे को कई बड़े पुरस्कारों से भी नवाजा गया। 1971 में उन्हें पद्मश्री और 2005 में पद्म भूषण मिला। लेकिन 30 सितंबर 2007 मन्ना डे के लिए एक खास दिन था, जब उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया। यह पुरस्कार भारत के सिनेमा के क्षेत्र में किसी भी कलाकार के लिए सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है। मन्ना डे को इस सम्मान के लिए उनकी संगीत की गहरी समझ, असाधारण गायन शैली और दिल तक पहुंचने वाली आवाज के लिए चुना गया। उनके नाम के चयन से यह साबित हो गया कि संगीत की दुनिया में उनकी छाप अमिट है।

मन्ना डे ने अपनी संगीत यात्रा के दौरान लगभग 3,000 से अधिक गीत गाए। उनकी आवाज ने सिनेमा को एक नई पहचान दी और संगीत के प्रति लोगों का नजरिया बदल दिया। 24 अक्टूबर 2013 को मन्ना डे का निधन हो गया, लेकिन उनके गानों की लोकप्रियता आज भी वैसी ही बरकरार है।

 

 

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