Naina Devi Temple : रंग-बिरंगे फूलों और लाइटों से दमक रहा मां नैना देवी का दरबार, अंतिम दौर में तैयारी

नवरात्रि पर नैना देवी मंदिर दिव्य सजावट से दमकेगा
शारदीय नवरात्रि 2025: रंग-बिरंगे फूलों और लाइटों से दमक रहा मां नैना देवी का दरबार, अंतिम दौर में तैयारी

बिलासपुर: हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले की ऊंची पहाड़ियों पर स्थित शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर में इस वर्ष शारदीय नवरात्रि (22 सितंबर, सोमवार) का शुभारंभ विशेष धूमधाम के साथ होगा। माता के दरबार को विभिन्न प्रकार के फूलों और लाइटों से सजाया जा रहा है, जिसे देख कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए।

हरियाणा की एक समाजसेवी संस्था मंदिर की सजावट का दायित्व संभाल रही है। संस्था द्वारा लगभग 11 कारीगर दिन-रात मेहनत कर माता के दरबार को एक दिव्य रूप देने में जुटे हैं। मंदिर परिसर को फूलों, रंग-बिरंगी लड़ियों और आकर्षक लाइटों से सजाया जा रहा है। खास बात यह है कि इस बार सजावट में विदेशी फूलों का भी उपयोग किया जा रहा है, जिससे पूरा मंदिर परिसर एक स्वर्गिक आभा से दमक उठेगा। कारीगरों के अनुसार नवरात्रि से एक दिन पहले मंदिर सजकर तैयार हो जाएगा।

बता दें कि नवरात्रि के अवसर पर प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए नैना देवी धाम पहुंचते हैं। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और हिमाचल सहित कई अन्य राज्यों से लोग बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए मंदिर प्रशासन और स्थानीय लोग हर वर्ष तैयारियां करते हैं। इस बार भी मंदिर की सजावट और प्रबंधन दोनों ही श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखकर किए जा रहे हैं।

नैना देवी मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत गहरा है। पुराणों के अनुसार, जब दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया, तब माता सती अपने पति का अपमान देखकर क्रोधित हो गईं और यज्ञ अग्नि में कूद गईं। भगवान शिव ने सती के जले हुए शरीर को उठाकर ब्रह्मांड का भ्रमण करना शुरू किया। उस समय भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के अंगों को अलग किया। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। मान्यता है कि नैना देवी मंदिर उसी स्थान पर स्थित है, जहां माता सती के नेत्र गिरे थे।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसी स्थान पर माता नैना देवी ने महिषासुर राक्षस का वध किया था। देवताओं ने प्रसन्न होकर माता की जयकार की और तभी से इस स्थान का नाम श्री नैना देवी पड़ा। मान्यता है कि माता के दरबार में आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण होती है।

इस मंदिर से जुड़ी एक विशेष मान्यता है कि नेत्र रोग से पीड़ित श्रद्धालु यहां मन्नत मांगते हैं। यदि उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वे माता को चांदी के नेत्र चढ़ाते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि ऐसा करने से नेत्र रोग दूर हो जाते हैं।

 

 

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