नई दिल्ली: दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच पिछले कुछ सालों से चल रही तनातनी आखिरकार खत्म हो गई। राजधानी की नई बीजेपी सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि उसने विधानसभा की विशेषाधिकार समिति के समक्ष कार्रवाई और पूछताछ का सामना कर रहे नौकरशाहों के खिलाफ आगे कोई कार्रवाई नहीं करने का फैसला किया है। आम आदमी पार्टी जब दिल्ली की सत्ता में थी तब उसके और अधिकारियों के बीच यह खींचतान चल रही थी।
दिल्ली सरकार के खिलाफ नौकरशाह अंशु प्रकाश, शूरबीर सिंह, जे बी सिंह, जी नरेंद्र कुमार और मनीष सक्सेना ने 2018 में दायर नौ याचिकाओं का जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने सरकार की दलीलें सुनने के बाद निपटारा कर दिया, जिससे याचिकाएं अर्थहीन हो गईं। नौकरशाहों ने विशेषाधिकार समिति द्वारा उन्हें जारी किए गए विशेषाधिकार हनन नोटिस को चुनौती दी थी, जिसमें मांग की गई थी कि वे समिति के समक्ष पेश हों।
इनमें से एक याचिका तत्कालीन मुख्य सचिव अंशु प्रकाश ने दायर की थी, जिन्होंने आरोप लगाया था कि समिति द्वारा उन्हें “दुर्भावना” के तहत नोटिस दिया गया है। प्रकाश ने कहा था कि आप विधायकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद यह कार्रवाई की गई थी, जिन्हें नौकरशाह पर कथित रूप से हमला करने के लिए न्यायिक हिरासत में भेजा था।
हाईकोर्ट ने 2018 में नौकरशाहों को जरुरत के मुताबिक विधानसभा के तहत समिति(यों) की कार्यवाही में भाग लेने का निर्देश दिया था। हालांकि, यह साफ हो गया था कि यदि विशेषाधिकार समिति कोई दंडात्मक उपाय लागू करती है या उसकी सिफारिश करती है, तो उसे तब तक किसी भी तरह से लागू या प्रभावी नहीं किया जाएगा, जब तक कि याचिकाएं कोर्ट में लंबित हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस ओहरी को 28 मार्च का एक पत्र सौंपा गया था, जिसमें विधानसभा के उप सचिव ने जीएनसीटीडी के स्थायी वकील को बताया कि 9 याचिकाओं के संबंध में, सदन ने 27 मार्च को फैसला लिया था कि छठी और सातवीं विधानसभा के दौरान विशेषाधिकार समिति, याचिका और प्रश्न समिति और संदर्भ समिति को भेजे गए लंबित मामलों पर अब आगे कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी और उनका निपटारा माना जाएगा। पत्र में यह भी कहा गया है कि याचिकाओं का कोई भी विषय विधानसभा या इसकी समितियों के समक्ष लंबित नहीं है, इसलिए इन्हें निपटाया हुआ माना जाए।