नई दिल्ली: बिहार की कई योजनाओं को केंद्र सरकार ने अपनाया है, इसमें अब जातीय जनगणना भी शुमार हो गया है। पीएम नरेंद्र मोदी ने बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पुरानी मांग को मंजूर कर लिया है। एक हैं तो सेफ हैं का नारा गढ़ने वाले नरेंद्र मोदी अब लोगों की जाति जानेंगे। वैसे, बिहार की नीतीश सरकार ने जाति आधारित गणना के बाद 94 लाख गरीब परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दो-दो लाख रुपए देने का फैसला लिया था।
सवाल उठ रहे हैं कि एक हैं तो सेफ हैं की बात करने वाले पीएम मोदी जातीय जनगणना के लिए तैयार कैसे हो गए? सुप्रीम कोर्ट में कास्ट सेंसस से बचने के लिए कई तरह की दलीलें केंद्र सरकार की ओर से दी गई थी। बिहार की जातीय सर्वे की खुले मंच से आलोचना की गई थी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। महागठबंधन के साथ रहकर बिहार में जातिगत सर्वे कराने के बाद नीतीश कुमार अब पीएम मोदी के पाले में हैं। वैसे बिहार की कई योजनाओं को केंद्र सरकार ने बड़े स्तर पर स्वीकार किया है। उसमें अब बिहार का जातीय सर्वे भी शुमार हो गया है।
बिहार के लोकप्रिय और बिहार के विकास के लिए समर्पित लाडले मुख्यमंत्री का तमगा तो पीएम मोदी बहुत पहले ही नीतीश कुमार को दे चुके हैं। बताया जा रहा है कि पूरे देश में जातीय जनगणना कराने के फैसले के जड़ में नीतीश ही हैं। उनकी पुरानी मांग को मोदी सरकार ने स्वीकार करने के साथ, उसे जमीन पर उतारने की कोशिशें भी शुरू कर दी है।
आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का दावा है कि उनके कहने पर ही 1996-97 में संयुक्त मोर्चा की तत्कालीन केंद्र सरकार ने जाति आधारित गणना कराने का फैसला लिया था। उसके बाद बनी एनडीए सरकार ने इसे लागू नहीं किया लेकिन ये भी सच है कि मनमोहन सिंह के 10 सालों के शासन काल में लालू यादव की पार्टी, सरकार में अहम भागीदार थी और जातीय जनगणना को लेकर कुछ वैसा नहीं हुआ।
कास्ट सेंसस के लिए मिशन के तौर पर काम करने का क्रेडिट नीतीश कुमार को ही जाता है। बिहार में नीतीश ने इसके लिए माहौल बनाया, वो अलग बात है कि तब वह महागठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। बिहार में सर्वदलीय बैठक बुलाकर सभी दलों की सहमति ली। इसके बाद सभी पार्टियों के नेताओं को लेकर दिल्ली गए, वहां पीएम मोदी से मिले। फाइनली, बिहार में कास्ट सर्वे हुआ, उसके डेटा भी सार्वजनिक कर दिए गए। इसके बाद 65 फीसदी आरक्षण भी नीतीश सरकार ने बिहार में लागू किया। फिर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी लेकिन गरीबों के जो डेटा मिले, उस पर नीतीश सरकार काम कर रही है।
नीतीश सरकार के कास्ट सर्वे से जानकारी आई कि राज्य में 94 लाख परिवार अत्यंत गरीब है। इन परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दो-दो लाख रुपए बिहार सरकार दे रही है। इस पर फेजवाइज काम चल रहा है। कास्ट सर्वे और उसके फाइंडिंग के सब काम तब हुए जब, नीतीश कुमार महागठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। इंडिया गठबंधन ने कास्ट सर्वे को सबसे ऊपर रखा। राहुल गांधी ने तो इसे मिशन ही बना रखा था, अब केंद्र की मोदी सरकार ने जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया है। इससे बिहार चुनाव में विपक्ष का एक बड़ा मुद्दा एक झटके में ही बदल गया।