नई दिल्ली: भारतीय खेल जगत के लिए '13 सितंबर' का दिन बेहद खास है। साल 2000 में इसी दिन भारत के ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद ने अपना पहला फिडे शतरंज विश्व कप जीतकर इतिहास रच दिया था।
चीन के शेनयांग में फिडे विश्व कप 2000 का आयोजन किया गया। यह 24 खिलाड़ियों का टूर्नामेंट था। 13 सितंबर को खिताबी मुकाबला खेला गया, जिसमें आनंद ने स्पेन के अलेक्सी शिरोव को शिकस्त देते हुए इतिहास रच दिया।
विश्वनाथन आनंद ने फाइनल में अलेक्सी शिरोव को हराकर खिताब और 50,000 डॉलर का नकद पुरस्कार जीता।
इस जीत ने न केवल विश्वनाथन आनंद की अंतरराष्ट्रीय पहचान को मजबूत किया, बल्कि भारत में शतरंज की लोकप्रियता को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 'चेस टाइगर' विश्वनाथन आनंद की यह उपलब्धि उनके करियर का स्वर्णिम अध्याय मानी जाती है।
11 दिसंबर 1969 को मयिलादुथुराई में जन्मे विश्वनाथन आनंद को शतरंज विरासत में मिला था। आनंद की मां सुशीला शतरंज की बेहतरीन खिलाड़ी थीं। आनंद के बड़े भाई-बहन मां के साथ शतरंज खेला करते थे। परिवार में शतरंज का माहौल था, जिसने आनंद को भी आकर्षित किया।
इस बीच आनंद के पिता विश्वनाथन कृष्णमूर्ति को फिलीपींस में जॉब का ऑफर मिला। महज 8 साल की उम्र में आनंद भी मनीला पहुंच गए, जहां उन्होंने शतरंज सीखना शुरू किया। आनंद ने जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शतरंज खेलना शुरू किया, उस समय इस खेल में रूस और यूरोपियन खिलाड़ियों का दबदबा था। साल 1987 में वह जूनियर वर्ल्ड कप जीतने वाले पहले एशियन बने।
साल 2000, 2007, 2008, 2010 और 2012 में विश्व चैंपियन बनकर विश्वनाथन आनंद ने इस खेल में अपनी बादशाहत कायम की। वह 21 महीनों तक वर्ल्ड नंबर-1 रहे। विश्वनाथन आनंद ने साल 1997, 1998, 2003, 2004, 2007 और 2008 में शतरंज ऑस्कर जीता।
आनंद को साल 1985 में 'अर्जुन अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया। साल 1988 में आनंद भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने। उसी साल उन्हें 'पद्मश्री अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया। उस वक्त वह सिर्फ 18 साल के थे।
साल 2001 में आनंद को 'पद्म भूषण' सम्मान मिला, जबकि साल 2008 में उन्हें 'पद्म विभूषण' से नवाजा गया।