Veda Krishnamurthy Retirement : कराटे के रास्ते निकली क्रिकेटर बनने की राह

भारतीय क्रिकेटर वेदा कृष्णमूर्ति ने संन्यास लिया, कमेंट्री में शुरू की नई पारी
वेदा कृष्णमूर्ति बर्थडे: कराटे के रास्ते निकली क्रिकेटर बनने की राह

नई दिल्ली: भारतीय महिला क्रिकेट टीम के लिए खेलना किसी भी महिला क्रिकेटर का सपना होता है। उनके लिए यह आसान नहीं होता। अपनी क्षमता प्रदर्शित करने के साथ-साथ उन्हें समाज की परंपरागत सोच से भी लड़ना पड़ता है। लेकिन, जो लड़ जाती हैं, वो अपनी मंजिल को पा लेती हैं। ऐसी ही एक क्रिकेटर हैं वेदा कृष्णमूर्ति, जिन्होंने भारतीय टीम की तरफ से खेलने का सपना देखा था और महज 18 साल की उम्र में उसे पूरा भी किया।

 

वेदा कृष्णमूर्ति का जन्म 16 अक्टूबर 1992 को कर्नाटक के चिकमंगलुरु में हुआ था। वह तीन साल की उम्र से क्रिकेट खेल रही हैं। बचपन में उन्हें कराटे की ट्रेनिंग भी दिलवाई गई थी। वेदा को कराटे पसंद नहीं था, लेकिन घर के दबाव में उन्होंने कराटे सीखा और 12 साल की उम्र में ब्लैक बेल्ट जीता। 13 साल की उम्र में उन्होंने क्रिकेट की प्रोफेशनल ट्रेनिंग लेनी शुरू की। वेदा का मानना है कि उन्हें बेशक कराटे पसंद नहीं था, लेकिन इसी खेल ने कहीं न कहीं शारीरिक तौर पर क्रिकेट के लिए उन्हें तैयार किया। एक क्रिकेटर के रूप में अपनी दक्षता के लिए वेदा अपने पहले कोच इरफान सैट को श्रेय देती हैं।

 

वेदा कृष्णमूर्ती ने जून 2011 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टी20 से अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर का आगाज किया था। इसी महीने इंग्लैंड के खिलाफ वनडे करियर का भी उन्होंने आगाज किया।

 

2011 से 2020 के बीच वेदा ने 48 वनडे मैचों में 8 अर्धशतक लगाते हुए 829 रन बनाए और 3 विकेट लिए। 71 उनका श्रेष्ठ स्कोर रहा। वहीं, 76 टी20 मैचों में 2 अर्धशतक लगाते हुए उन्होंने 875 रन बनाए। वेदा 2017 में वनडे विश्व कप और 2020 में टी20 विश्व कप का फाइनल खेलने वाली टीम की सदस्य थीं।

 

जुलाई 2025 में वेदा कृष्णमूर्ती ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों को अलविदा कह दिया था।

 

सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा था, "एक छोटे शहर की लड़की, जिसके सपने बड़े थे। कदुर में यह सब शुरू हुआ। जब मैंने बल्ला उठाया था, तो सिर्फ इतना पता था कि इस खेल से मुझे प्यार है। कहां तक जाऊंगी, इसका अंदाजा नहीं था। मुझे गर्व है कि संकरी गलियों से दुनिया के बड़े स्टेडियमों तक खेलने का मौका मिला। क्रिकेट ने मुझे करियर से बढ़कर बहुत कुछ दिया। मुझे मेरे होने का एहसास दिलाया। इसने मुझे सिखाया कि कैसे लड़ना है, कैसे गिरना है, और कैसे खुद को साबित करना है। आज, पूरे दिल से, मैं इस अध्याय को विराम दे रही हूं।"

 

कृष्णमूर्ती कमेंटेटर के रूप में अपनी दूसरी पारी में क्रिकेट से जुड़ी हुई हैं।

 

 

 

 

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