नई दिल्ली : 'भारतीय बॉक्सिंग के बादशाह' कहलाने वाले हवा सिंह लगातार 11 बार नेशनल चैंपियन रहे हैं। एशियन गेम्स में दो गोल्ड मेडल जीतने वाले इस बॉक्सर की मेहनत, ताकत और अनुशासन ने उन्हें पूरे विश्व में खास पहचान दिलाई।
हवा सिंह का जन्म 16 दिसंबर 1937 को हरियाणा में हुआ था। गुलाम भारत में पैदा हुए हवा सिंह के खून में देशभक्ति थी। उन्हें भारत की सेवा करनी थी। साल 1956 में आर्मी जॉइन कर ली। उस वक्त हवा सिंह महज 19 साल के थे।
आर्मी के दौरान हवा सिंह ने बॉक्सिंग शुरू की। वह बेहद मेहनती और किसी भी चीज को सीखने में माहिर थे। हवा सिंह ने लगन के बूते जल्द ही इस खेल में अपना लोहा मनवा लिया।
हवा सिंह कुछ वक्त में ही वेस्टर्न कमांड के चैंपियन बन चुके थे। उन्होंने सेना के गत चैंपियन मोहब्बत सिंह को मात देकर साल 1960 में यह उपलब्धि हासिल की। इसके बाद हवा सिंह लगातार 11 साल तक नेशनल चैंपियन रहे।
साल 1962 में जकार्ता में एशियन गेम्स खेले जाने थे, लेकिन भारत-चीन के बीच तनाव के चलते हवा सिंह ने इसमें हिस्सा नहीं लिया।
भले ही साल 1962 के एशियन गेम्स में हवा सिंह भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सके, लेकिन बैंकॉक में हुए एशियन गेम्स 1966 और एशियन गेम्स 1970 में उन्होंने गोल्ड मेडल जीतते हुए इतिहास रच दिया।
साल 1966 में हवा सिंह को उनके बेहतरीन खेल के लिए 'अर्जुन अवॉर्ड' से नवाजा गया। साल 1968 में यह बॉक्सर चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ की ओर से 'बेस्ट स्पोर्ट्समैन' चुना गया।
हवा सिंह एशियन गेम्स में दो गोल्ड जीत चुके थे, जिसके बाद एशियन गेम्स 1974 के फाइनल में ईरान के प्रतिद्वंद्वी को बुरी तरह परास्त किया, लेकिन रेफरी के विवादित फैसले के चलते गोल्ड से चूक गए।
साल 1980 में हवा सिंह ने बॉक्सिंग से संन्यास ले लिया। इसके बाद वह भिवानी में बस गए, जहां भिवानी बॉक्सिंग ब्रांच के चीफ कोच का पद संभाला। यहां युवा मुक्केबाजों को इस खेल के गुर सिखाने शुरू किए। उनके बैच में 10 खिलाड़ी थे, जिनमें से एक राजकुमार सांगवान थे।
हवा सिंह की ख्वाहिश थी कि वह दिग्गज बॉक्सर मोहम्मद अली का सामना करें, लेकिन उनकी यह इच्छा अधूरी ही रह गई। 14 अगस्त 2000 को 62 वर्ष की उम्र में हवा सिंह का निधन हो गया।
महज 15 दिन बाद ही उन्हें 'द्रोणाचार्य अवॉर्ड' से नवाजा जाना था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। हवा सिंह के निधन के बाद यह अवॉर्ड उनकी पत्नी अंगूरी देवी को सौंपा गया।