नई दिल्ली, 26 सितंबर (आईएएनएस)। भारतीय प्राइमरी मार्केट के लिए सितंबर का महीना बीते 28 वर्षों में सबसे व्यस्त रहा है। इस दौरान 25 कंपनियों की लिस्टिंग हुई, जो कि जनवरी 1997 के बाद सबसे बड़ा आंकड़ा है, जिस दौरान 28 कंपनियां सूचीबद्ध हुई थीं।
स्टॉक एक्सचेंज के पास उपलब्ध डेटा के मुताबिक, एसएमई आईपीओ की गतिविधियां भी इस महीने रिकॉर्ड स्तर पर रही हैं और छोटी कंपनियां 53 आईपीओ के जरिए 2,309 करोड़ रुपए जुटाने में सफल रही हैं। यह एक महीने में एसएमई कंपनियों द्वारा जुटाई गई अब तक की सबसे अधिक राशि है।
वहीं, इस दौरान कुल 25 मेनबोर्ड आईपीओ ने 13,300 करोड़ रुपए से ज्यादा जुटाए हैं।
विश्लेषकों ने इस उछाल का श्रेय मजबूत विदेशी संस्थागत निवेश और सेकेंडरी बाजारों में उतार-चढ़ाव के बावजूद खुदरा निवेशकों और म्यूचुअल फंडों की निरंतर मांग को दिया है। सेकेंडरी बाजार में मूल्यांकन संबंधी चिंताओं के बीच म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियां, पेंशन फंड और खुदरा निवेशक लगातार नए इश्यू की तलाश कर रहे हैं।
महीने के दौरान सेंसेक्स 80,364 से बढ़कर 80,795 पर पहुंच गया है और बीएसई मिडकैप और बीएसई स्मॉलकैप ने बेंचमार्क सूचकांकों से बेहतर प्रदर्शन किया है।
इसके अतिरिक्त, टेक स्टार्टअप्स को फंडिंग देने के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। देश केवल अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम से पीछे है, लेकिन जर्मनी और फ्रांस जैसे विकसित देशों से आगे निकल गया है।
सेबी ने अपनी हालिया बोर्ड बैठक में आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) की योजना बना रही बड़ी कंपनियों के लिए न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (एमपीएस) मानदंडों को संशोधित करने का निर्णय लिया। नए मानदंडों के तहत, 50,000 करोड़ रुपए से 1 लाख करोड़ रुपए के बाजार पूंजीकरण वाली कंपनियों को अब सार्वजनिक शेयरधारिता की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिक समय मिलेगा।
उन्हें सूचीबद्ध होने के पांच वर्षों के भीतर 15 प्रतिशत एमपीएस और 10 वर्षों के भीतर 25 प्रतिशत एमपीएस हासिल करना होगा। वर्तमान में, कंपनियों को तीन वर्षों के भीतर 25 प्रतिशत की सीमा पूरी करनी होती है।
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