सुधीर जोशी
महाराष्ट्र में भगवाई राजनीति में बढ़ती दरार चिंता बढ़ा रही है. भाजपा-शिवसेना ने लंबे अर्से तक मिलकर सत्ता का सुख भोगा, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद की मांग को लेकर भाजपा से किनारा कर लिया. बदले हालातों में महाराष्ट्र की भगवाई राजनीति में विद्रोह का झंडा उठाने वाले दो एकनाथ ने पार्टीके शीर्ष नेतृत्व के सामने संकट खड़ा कर दिया है. एक भाजपा के एकनाथ खड़से तथा दूसरे शिवसेना के एकनाथ शिंदे. खड़से तथा शिंदे के बागी तेवर ने भाजपा तथा शिवसेना में भी आंतरिक विरोध की ज्वाला ज्यादा भटकती है, इस बात को सिद्द कर दिखाया है।
एकनाथ खड़से ने मचाया था भाजपा में कोहराम- भाजपा में लंबी राजनीतिक पारी खेलने के बाद राकांपा का दामन थाम चुके एकनाथ खड़से भले ही देवेंद्र फडणवीस के मंत्रिमंडल में राजस्व मंत्री रहे, लेकिन उन्होंने कभी खुद को मुख्यममंत्री से कम नहीं माना. उन्होंने फडणवीस को सदैव स्वयं से छोटा नेता ही माना. जमीन भ्रष्टाचार की वजह के कारण ने राजस्व मंत्री पद से हटाए गए एकनाथ खडसे का विद्रोही तेवर भाजपा छोड़ने तक बना रहा. एकनाथ खडसे ने कभी-भी समझौतावादी नीति कभी नहीं अपनाई. एकनाथ खड़से ने कभी-भी देवेद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री नहीं माना, वे सदैव खुद को ही मुख्यमंत्री से बड़ा बताते रहे. पद से हटाए जाने के बावजूद एकनाथ खड़से को भाजपा से निकाला नहीं गया. एकनाथ खड़से ने देवेंद्र फडणवीस की आलोचना करने का एक भी मौका हाथ से नहीं जाने दिया. बार-बार आलोचना करने के बाद भी देवेंद्र फडणवीस ने एकनाथ खड़से को पार्टी से बाहर निकालने के बारे में कभी सोचा भी नहीं, लेकिन एकनाथ खड़से ने कभी भी देवेंद्र फडणवीस के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया.
खुद को माना मुख्यमंत्री से बड़ा- एकनाथ खड़से केवल इस बात को लेकर नाराज थे कि उनके जैसा वरिष्ठ नेता होने के बाद भी देवेंद्र फडणवीस को मुख्यममंत्री क्यों बनाया गया. जिस वक्त देवेंद्र फडणवीस का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए सामने आया, उस वक्त खड़से ने कहा था कि देवेंद्र मुख्यमंत्री जैसे अनुभवहीन व्यक्ति को मुख्यमंत्री की कमान सौंपना पार्टी हित में नहीं है. 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले तक मुख्यमंत्री की दौड़ में देवेंद्र फडणवीस का नाम सामने नहीं आया था, लेकिन जैसे ही देवेंद्र फडणवीस का नाम प्रधानमंत्री की ओर से सामने लाया गया एकनाथ खड़से का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।
एकनाथ खड़से को यह गवारा ही नहीं हो पा रहा था कि उनसे आयु तथा अनुभव बहुत छोटे देवेंद्र फडणवीस का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए कैसे सामने लाया गया. हालांकि जब देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में सरकार बनी तो एकनाथ खड़से को राजस्व मंत्री बनाया गया, लेकिन एकनाथ खड़से इससे संतुष्ट नहीं थे, वे खुद को मुख्यमंत्री ही मानते रहे, बाद में जब उन पर जमीन घोटाले का आरोप लगा तो उन्हें देवेंद्र फडणवीस के मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा।
राजस्व मंत्री से हटने के बाद भी करते रहे आलोचना- राजस्व मंत्री पदसे हटने के बाद भी एकनाथ खडसे देवेंद्र फडणवीस की येन-केन प्रकारेण आलोचना करते रहे. बार- बार मुख्यमंत्री के खिलाफ जहर उगलने के बाद भी एकनाथ खड़से भाजपा में बने रहे. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी एकनाथ खड़से का व्यवहार अच्छा नहीं लगता था. देवेंद्र फडणवीस ने भी शीर्ष नेतृत्व के पास एकनाथ खड़से की शिकायत की थी और इसका नतीजा यह हुआ कि एकनाथ खड़से को भाजपा को राम राम कहना पड़ा. वर्तमान में एकनाथ खड़से राकांपा के नेता बन गए हैं।
शिवसेना का बागी चेहरा बने एकनाथ शिंदे- भाजपा के एकनाथ के बाद अब बात करते हैं शिवसेना के एकनाथ की यानि एकनाथ शिंदे की. एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के 44 विधायकों को लेकर अपना एक अलग गुट बना लिया है और यह भी दावा किया है कि उनका गुट ही असली शिवसेना है. राज ठाकरे के बाद एकनाथ शिंदे के रूप सामने आए शिवसेना के एक अन्य गुट के साथ ही असली और नकली शिवेसना कौन, इसे लेकर जोरदार धमासान मचा हुआ है. बागी विधायकों के कारण शिवसेना और कमजोर हो गई है. एकनाथ शिंदे के बागी तेवर शिवसेना बाला साहेब ठाकरे नामक नई पार्टी बनाने की पेशकश करके एकनाथ शिंदे शिवसेना के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने आए हैं.
सत्ता पाने के लिए अपने बाप का नाम उपयोग करें- शिवसेना ने एकनाथ शिंदे गुट की ओर से अपनी संभावित राजनीतिक पार्टी का नाम शिवसेना बाला साहेब ठाकरे रखने पर आपत्ति दर्ज की और कहा कि सत्ता प्राप्त करनी है तो अपने बाप के नाम का उपयोग करें, बाला साहेब का नाम नहीं. शिवसेना का नाम लेते ही ठाकरे परिवार का नाम ही सामने आता रहा है, लेकिन अब शिवसेना दो भागों में बंट गई है, एक उद्धव ठाकरे की शिवसेना और दूसरी एकनाथ शिंदे की शिवसेना. दोनों शिवसेना खुद को असली बता रही है. बाला साहेब की शिवसेना किसकी होगी और किस गुट को धनुष-बाण पार्टी के चुनाव चिन्ह के रूप में मिलेगा. जिस गुट को चुनाव चिन्ह के रूप में धनुष बाण मिलेगा, उसे ही वास्तविक शिवसेना कहा जाएगा।
असली-नकली में छिड़ी जंग- एकनाथ शिंदे ने भरत गोगावले को अपनी पार्टी का मुख्य सचेतक बनाया है. भरत गोगावले ने एकनाश शिंदे की महाराष्ट्र शिवसेना को हो असली शिवसेना करार दे दिया है. इसके पीछे वे यह तर्क दे रहे हैं कि जिसके पास ज्यादा विधायक होंगे, उसे ही असली शिवेसना माना जाएगा, इस आधार पर एकनाथ शिंदे की महाराष्ट्र शिवसेना को ही असली शिवसेना माना जाएगा. हालांकि कुछ लोगों का दावा है कि जिसे घनुष बाण चुनाव चिन्ह दिया जाएगा, वही असली शिवसेना मानी जाएगी. असली- नकली शिवसेना की लड़ाई में शिवसेना की गिरती साख की ओर किसी का ध्यान नहीं है।
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे को विधायक दल नेता पद से हटाकर उनके स्थान पर अजय चौधरी को शिवसेना विधायक दल का नेता चुना. उद्धव ठाकरे ने निर्णय के बाद एकनाथ शिंदे ने कहा कि शिवसेना ने नवंबर, 2019 में ही (सरकार बनाते समय) मुझे विधायक दल का नेता घोषित किया था, इसलिए मैं आज भी विधायक दल का नेता हूं. एकनाथ शिंदे ने भले ही 44 विधायकों के साथ प्रति शिवसेना बना ली हो लेकिन उन्होंने साफ कहा है कि मैं शिवसेना प्रमुख बालासाहेब के विचारों को ही आगे बढ़ाऊंगा. एकनाथ शिंदे की शिवेसना में जिस तरह की उपेक्षा की गई उससे वे आहत थे, इसलिए उन्होंने बागी तेवर अपनाया।
2014 में ही भाजपा में जाने की मंशा- 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से शिवसेना के कुछ भाजपा में जाने का विचार कर रहे थे. तभी से इस बात की आहट लग गई थी कि भविष्य में बागी तेवर अपना सकते हैं. एकनाथ शिंदे तथा उनके सर्मथक विधायकों की नाराजगी कोई आज की नहीं है, वे तो काफी समय पहले से ही नाराज चल रहे थे लेकिन सही समय की तलाश में थे. विधान परिषद चुनाव में भाजपा को मिली शानदार सफतला के बाद एकनाथ शिंदे तथा उनके समर्थन में सामने आए विधायकों ने विरोध का झंडा लिया और कहा कि शिवसेना प्रमुख भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाएं, लेकिन उद्धव ठाकरे इसके लिए तैयार नहीं हैं।
एकनाथ शिंदे तथा उनके समर्थन में खड़े विधायकों की चाहत है कि शिवसेना अपने विपरीत विचारधारा वाली राकांपा तथा कांग्रेस का दामन छोडकर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाए. लंबे समय तक एक साथ सत्ता चलाने वाली भाजपा-शिवसेना के बीच रिश्तों में खटास की जुलाई 2014 से शुरु हुई, तब शिवसेना की युवा शाखा के प्रमुख आदित्य ठाकरे ने ‘मिशन 150’ लांच किया था. इस मिशन का मुख्य उद्देश्य उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाना था. आदित्य का मिशन-150 भाजपा के गले नहीं उतरा तभी से भाजपा-शिवसेना के बीच टकराव बढ़ता चला गया।
शिवसेना को भारी पड़ेगी बगावत- संजय निरुपम, छगन भुजबल, राज ठाकरे, गणेश नाईक जैसे कद्दावर नेताओं ने शिवसेना का साथ छोड़कर दूसरे राजनीतिक दल का दामन थाम लिया. लेकिन राज ठाकरे के बाद एकनाथ शिंदे की शिवसेना से की गई बगावत ने शिवसेना को झकझोर कर रख दिया है. पहले भाजपा से दूरी और अब एकनाथ शिंदे समेत 44 विधायकों के बागी तेवर ने शिवसेना के सामने बहुत बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. राज्य में एक बार देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में सरकार बनने जा रही है, लेकिन एकनाथ शिंदे के बागी तेवर ने शिवसेना को काफी कमजोर कर दिया है, जिस वक्त छगन भुजबल, सजय निरुपम, राज ठाकरे तथा गणेश नाईक ने शिवसेना का दामन छोड़ा था, उस वक्त बाल ठाकरे जीवित थे, उन्होंने अपनी शैली में पार्टी छोड़ने वालों से कहा था कि जो जाना चाहते हैं, वे जाएं लेकिन आज हालात बहुत अलग हैं, इसलिए शिवसेना के लिए एकनाथ शिंदे का बागी तेवर शिवसेना की सेहत पर काफी असर डालेगा. शिवसेना को एकनाथ शिंदे के बागी तेवर को बहुत गंभीरता से लेना होगा।
ठाणे में शिवसेना की ताकत बढ़ायी- सातारा जिले में 9 फरवरी 1964 को जन्मे एकनाथ शिंदे ने ठाणे को अपनी कर्मभूमि बनाया. अपने परिवार के लोगों के पालन-पोषण के लिए आटो चलाने वाले एकनाथ शिंदे ने ठाणे में शिवसेना को मजबूत बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी. शिवसेना के कद्दावर नेता स्व. आनंद दिघे से प्रभावित होकर शिवसेना में आए एकनाथ शिंदे आनंद दिघे को अपना राजनीतिक गुरू मानते हैं. एकनाथ शिंदे पहले शिवसेना के शाखा प्रमुख और फिर ठाणे महानगरपालिका के नगसेवक चुने गए।
आनंद दिघे के उत्तारधिकारी बने- दुर्घटना में अपने पुत्र-पत्री को खोने के बाद जब एकनाथ शिंदे ने राजनीति छोड़ने ऐलान कर दिया तो आनंद दिघे ने एकनाथ शिंदे को राजनीति न छोड़ने की सलाह दी और उन्हें राजनीति में बने रहने के लिए तैयार कर लिया. 26 अगस्त, 2001 को एक हादसे में आनंद दिघे की मौत ने एकनाथ शिंदे को झकझोर कर रख दिया. हालांकि कुछ लोगों का यह भी दावा है कि आनंद दिघे की मौत नहीं हुई, बल्कि हत्या की गई थी. हाल ही में आनंद दिघे की मौत पर आधारित मराठी फिल्न धर्मवीर रिलीज हुई, जिसको खूब सराहना मिल रही है।
आनंद दिघे धर्मवीर के नाम से पहचाने जाते थे, इसलिए उन पर बनी फिल्म का नाम भी धर्मवीर ही रखा गया. एकनाथ शिंदे शुरुआत से ही दीघे के साथ जुड़े हुए थे, लिहाजा उनकी राजनीतिक विरासत शिंदे को ही मिली और एकनाथ शिंदे ने इस विरासत का अच्छी तरह से जतन करने हुए ठाणे में शिवसेना को स्थापित करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
2004 में पहली बार बने विधायक- 2004 में पहली बार विधायक बने एकनाथ शिंदे ने जहां एक ओर ठाणे में शिवसेना की ताकत बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी वहीं, शिवसेना के एक मजबूत नेता के रूप में स्वयं को आगे लाया. 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में भी जीत का सेहरा अपने माथे पर बांधने वाले एकनाथ शिंदे 2014 में विधानसभा में विरोध पक्ष के नेता भी बने. मंत्री पद पर रहते हुए शिंदे ने हमेशा अहम विभाग की जिम्मेदारी निभायी. वर्ष 2014 में फडणवीस सरकार में सार्वजनिक निर्माण कार्य मंत्री रहे एकनाथ शिंदे 2019 में सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और नगर विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई।
तो और बढेगी अंसतोष की ज्वाला-शिवसेना प्रमुख को चुनौती देकर एकनाथ शिंदे ने जिस तरह से बागी तेवर अपनाया है, उसका क्या असर पड़ेगा, यह भविष्य के गर्भ में है, लेकिन अगर समय रहते असंतुष्टों पर ब्रेक नहीं लगाया गया तो शिवसेना में अंसतोष की ज्वाला और ज्यादा बढ़ेगी. शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे जब तक रहे उनके नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाने की कभी किसी ने हिम्मत नहीं की, लेकिन अब एक साथ 44 शिवसेना विधायक पार्टी नेतृत्व के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं. जो शिवसेना के भविष्य की दृष्टि से कत्तई ठीक नहीं है. इस तरह भाजपा के लिए एकनाथ खड़से तथा शिवसेना के लिए एकनाथ शिंदे परेशानी का कारण बनकर सामने आए हैं।
—दैनिक हाक फीचर्स