सुधीर जोशी
देश के बड़े राज्यों में शुमार महाराष्ट्र राज्य की राजनीति जिस रास्ते चल रही है, उससे इस बात का पता चल रहा है कि कुछ भी ठीक नहीं है. न तो भाजपा-शिवसेना के बीच के राजनीतिक रिश्ते ठीक हैं और न ही कांग्रेस-राकांपा के बीच पहले जैसे रिश्ते हैं, ऐसे में राज्य में न हिंदुत्व की धार अच्छी है और ही कांग्रेस-राकांपा आघाडी का राजनीतिक अस्तित्व सुरक्षित है. संघ, शिवसेना तथा भाजपा ये तीनों भगवाई राजनीति को अपने-अपने चश्मे से देख रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारी हिंदुत्व के प्रति धारणा पहले जैसी ही है, लेकिन हकीकत क्या है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है. राजनीति पंडित आज के हिंदुत्व को किस तरह से देखते हैं, उनकी नज़र में हिंदुत्ववादी राजनीति का अस्तित्व कितना सुरक्षित है, इस बस बातों पर गंभीरता से चिंतन करना जरूरी है.
वर्ष 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद शिवसेना ने जिस तरह से मुख्यमंत्री पद की जिद्द में भाजपा का साथ छोड़कर राकांपा-कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास आघाडी के बैनर तले सरकार बना ली, उसी वक्त से भाजपा को किसी ऐसे राजनीतिक साथी की तलाश थी, जो हिंदुत्ववादी विचारधारा का पोषक हो और जिसकी एक राजनीतिक दल के रूप में पहचान हो, इस लिहाज से राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का नाम सामने आया. हिंदुत्ववादी राजनीति की पैरवी करने वाले अनेक संगठन तथा संस्थाएं हैं, लेकिन जहां तक जानाधार का सवाल है, उस मामले में मनसे अन्य के मुकाबले काफी आगे है. संघ समेत अन्य हिदुत्ववादी संगठन चुनाव में अपने उम्मीदवार नहीं उतारते हैं, ऐसे में शिवसेना से रिश्ता टूटने के बाद भाजपा ने अपने नए राजनीतिक साथी के रूप में मनसे को देखना शुरु किया.
भाजपा- मनसे की जोड़ी भाजपा-शिवसेना की तरह सफल तथा मजबूत होगी या नहीं यह तो शोध का विषय है लेकिन इतना तो तय है कि शिवसेना का साथ छूटने के बाद भाजपा को भी इस बात की दरकार है कि उसे कोई ऐसा राजनीतिक साथी मिल जाए, जिसको साथ लेकर वह सत्ता हासिल कर सके. वर्तमान में राज्य में कोई भी राजनीतिक दल ऐसी स्थिति में नहीं है कि वह अपने बूते पर सरकार बना सके, यहां तक कि 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में सामने आई भाजपा को भी उतनी सीटें नहीं मिली कि वह अपने बूते पर सरकार बना सके और इसी का लाभ उठाकर दूसरे नंबर आई शिवसेना ने राकांपा-कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली. जोड़-तोड़ की राजनीति करके स्वयंभू मुख्यमंत्री बने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे राज्य में शिवसेना के मुख्यनमंत्री बनने को अपने पिता का सपना करार देने में जरा भी देर नहीं लगायी.
भाजपा से नाता तोड़कर सत्ता सुख भोग रही शिवसेना तथा उद्धव ठाकरे द्वारा शिवसेना की विचारधारा को तिलांजलि देने से भाजपा-मनसे दोनों ही नाराज हैं, इसलिए दोनों ने मिलकर शिवसेना को ही समाप्त करने का मन बना लिया है. शिवसेना-राकांपा तथा कांग्रेस के इस शामिलबाजे में सबसे ज्यादा नुकसान शिवसेना को ही हो रहा है, इस ओर किसी भी शिवसेना नेता का ध्यान नहीं है. मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने मस्जिद से लाऊडस्पीकर उतारने की जोरदार मांग करते हुए यह भी चेतावनी दी है कि मनसे की ओर से अक्षय तृतीया के दिन मदिरों में महाआरती जाएगी. 3 मई को अक्षय तृतिया के दिन पूरे महाराष्ट्र के मंदिरों में महाआरती की जाएगी. पिछले दिनों राज ठाकरे के दादर स्थित आवास पर आयेजित बैठक में आगामी 5 जून के आयोध्या दौरे की रुपरेखा तैयार की गई.
बैठक में अक्षय तृतिया पर महाआरती कैसे की जाएगी, इस विषय पर भी व्यापक विचार-विमर्श हुआ. जहां एक ओर मनसे की ओर से महाआरती के माध्यम से तनाव फैलाने की कोशिश की जा रही है तो दूसरी ओर राज्य के गृह मंत्री दिलीप वलसे पाटिल का कहना है कि मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने के लेकर जो टकराव चल रहा है, उससे राज्य में आशांति की स्थिति पैदा हो गई है.
भाजपा की ओर से लाउडस्पीकर हटाने के राज ठाकरे के फैसले का समर्थन तथा विरोध दोनों किया जा रहा है. केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले तथा अंतर्राष्ट्रीय हिंदु परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया ने भाजपा तथा मनसे दोनों को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि जिस वक्त राज्य में भाजपा की सरकार थी उस वक्त मस्जिदों से लाऊड स्पीकर क्यों नहीं उतारे गए. शिवसेना सांसद तथा राज्य में महाविकास आघाडी की सरकार के गठन में अहम भूमिका अदा करने वाले संजय राऊत तो अयोध्या तथा शिवसेना के रिश्ते को काफी पुराना करार दे दिया है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने से पहले और मुख्यमंत्री बनने के बाद अयोध्या दौरे पर जा चुके हैं. राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री तथा मुख्यमंत्री के सुपुत्र आदित्य ठाकरे तथा मुख्यमंत्री की मंत्री भी अयोध्या का दौरा कर चुके है.
राज ठाकरे के अयोध्या दौरे पर न केवल शिवसेना बल्कि सरकार में शामिल राकांपा तथा कांग्रेस की भी निगाहें लगी हुई हैं. भाजपा के साथ मनसे के आने के बाद कई अन्य छोटे-मोटे गठबंधन होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. अगर मुंबई मनपा समेत अन्य चुनावों में भाजपा-मनसे एक साथ उतरे तो राजनीतिक समीकरण बहुत बदल जाएंगे. चूंकि सरकार में सहभागिता को लेकर कांग्रेस में खासा विरोध है, इसलिए कुछ राजनीतिक जानकारों का दावा है कि आगामी विधानसभा तथा अन्य चुनावों में कांग्रेस भी कुछ क्षेत्रीय तथा कुछ स्थानीय राजनीतिक दलों से गठबंधन करके उतरेगी.
शिवसेना में रहते समय जिस राज ठाकरे ने परप्रांतीयों के खिलाफ जंग छेड़ी थी, वहीं राज ठाकरे आज समूचे महाराष्ट्र में हनुमान चालीसा पढ़ने पर जोर डाल रहे हैं. जिस शिवसेना भवन से महाराष्ट्र में परप्रांतियों के आने पर अंकुश लगाने की आवाज बुलंद की गई, उसी शिवसेना भवन पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को सपत्नीक हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए कहा जा रहा है. जिस भारतीय जनता पार्टी को परप्रांतीय लोगों की समर्थक पार्टी कहा जाता है, उसी भाजपा की दूसरी राजनीतिक हमसफर पार्टी के रूप अब मनसे को देखा जाने लगा है. शिवसेना के साथ भाजपा के रिश्ते इतने कटु हो चुके हैं कि अब भविष्य में दोनों दलों के एक होने की संभावना दूर-दूर तक नहीं है, ऐसे में भाजपा अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगी कि उसे मनसे रूपी एकराजनीतिक हमसफर का साथ मिले. हालांकि आज की तारीख में भाजपा तथा मनसे दोनों की स्थिति ऐसी है कि वह अपने बूते सत्ता नहीं प्राप्त कर सकती ऐसे में भाजपा-मनसे के रुप में नया गठबंधन सामने आ जाए तो इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
भाजपा-मनसे गठबंधन के माध्यम से भगवाई राजनीति को बचाए रखने की कोशिश को जनता का कितना समर्थन मिलेगा, यह तो समय बताएगा लेकिन इतना तो तय है कि अगर आगामी चुनाव में भाजपा-मनसे ने एक साथ हिस्सा लिया तो शिवसेना को भी किसी न किसी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरना पड़ेगा. अगर शिवसेना- राकांपा, भाजपा-मनसे तथा कांग्रेस- वंचित बहुजन आघाड़ी के बीच मुकाबता हुआ तो शिवसेना-राकांपा तथा भाजपा-मनसे के बीच कड़ी टक्कर होगी. लंबे समय से सत्ता में साथ रही राकांपा को इस बात का मलाल है कि राज्य में अब तक उसका मुख्यमंत्री नहीं बन सका है, ऐसे में इस बात के प्रबल आसार हैं कि राकांपा-शिवसेना साथ मिलकर चुनावी जंग में उतरे और सबसे ज्यादा सीटें हासिल कर राकांपा का मुख्यमंत्री बने.
अगर 2019 के विधानसभा चुनाव के परिणाम के नजरिए से देखा जाए तो यह वर्तमान स्थिति में भाजपा 105 सीटों के साथ पहले स्थान पर है जबकि 56 सीटों के साथ राकांपा दूसरे स्थान पर है, अगर साथ-साथ मिलकर राकांपा-शिवसेना ने चुनाव लड़ा तो राकांपा की झोली में शिवसेना से ज्यादा सीटें होंगी, ऐसे में राज्य में राकांपा के पहले मुख्यनंत्री की तापजोशी हो सकती है, लेकिन अगर भाजपा-मनसे की जोड़ी को सबसे ज्यादा सीटें मिली तो राकांपा का खुद का मुख्यमंत्री बनाने का सपना अधूरा ही रह जाएगा.
भाजपा का राज्यस्तरीय तथा केंद्रीय नेतृत्व महाराष्ट्र में भाजपा की सत्ता तो चाहता है लेकिन वह अपने साथ अपने पुराने साथी शिवसेना को नहीं लेना चाहता, ऐसे में अगर शिवसेना से अलग हुए राज ठाकरे तथा उनके सर्मथकों का खेमा भाजपा से हाथ मिलता है तो भाजपा तथा मनसे दोनों मिलाकर 124 सीटों के जादुई आंकड़े तक आसानी से पहुंच सकते है, लेकिन भाजपा-मनसे के गठबंधन में सबसे बड़ा संकट यह है कि अगर इस गंठबंधन को लेकर परप्रांतीय लोगों का गुस्सा सामने आया तो यह भाजपा के लिए नुकसानदेह साबित होगा.
कुल मिलाकर भाजपा-मनसे के इस संभावित गठबंधन की साफ तस्वीर अभी तक सामने नहीं आई है. जैसे-जैसे समय बीतेगा, तस्वीर साफ होती जाएगी लेकिन राज्य में वैसे स्थिति आने वाले में अभी वक्त लगेगा, जैसे स्थिति भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकारों में भगवाई सत्ता के दौरान देखने को मिलती थी.
भाजपा तथा मनसे का राजनीतिक साथ कितना लंबा चलेगा. इस गठबंधन में मतदाता कितना स्वीकार करेंगे, इन जैसे सवालों पर ही भाजपा-मनसे गठंबधन का भविष्य टिका हुआ है. अगर एक कार्यकाल भी भाजपा-मनसे एक साथ रहे तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि भाजपा-मनसे का गठबंधन भी सत्ता चला सकता है. अगर भाजपा-मनसे सफलतापूर्वक सरकार चलाने में सफल हो गए तो यह महाविकास आघाड़ी सरकार के लिए किसी चुनौती से कमं नहीं होगा.