लंदन: अगर भारत और पाकिस्तान ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती नहीं की, तब दोनों देशों को साल 2100 तक प्रति वर्ष लू चलने की सामान्य से अधिक घटनाओं का सामना करना होगा। हालिया शोध में यह चेतावनी दी गई है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन एक हकीकत है, इस साल भारत व पाकिस्तान में बेहद उच्च तापमान दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में लू का प्रकोप बढ़ने की आशंका है, जिससे हर साल लगभग 50 करोड़ लोग प्रभावित होने वाले हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, जब गर्मी का स्तर मनुष्य की सहन शक्ति से बाहर होगा, तब यह खाद्य वस्तुओं की कमी, मौतों और शरणार्थियों के प्रवाह का कारण बनेगा। हालांकि, उन्होंने कहा कि अगर पेरिस जलवायु समझौते के तहत वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रभावी उपाय होते हैं, तब ऐसा नहीं होगा। शोध में 2100 तक दक्षिण एशिया में लू के दुष्प्रभावों से पनपने वाले विभिन्न परिदृश्यों का आकलन किया गया है।
शोध पत्र के सह-लेखक ने कहा कि हमने अत्यधिक गर्मी और जनसंख्या के बीच की कड़ी का पता लगाया है। सबसे अच्छे परिदृश्य, जिसमें माना गया है कि हम पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने में सफल रहे, तब उसके तहत प्रति वर्ष लू चलने की दो अतिरिक्त घटनाएं सामने आने का अनुमान है, इससे लगभग 20 करोड़ लोग प्रभावित होने हैं। शोधकर्ता के मुताबिक, लेकिन अगर देश ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में योगदान देना जारी रखते हैं, जैसा कि वे अभी भी कर रहे हैं, तब हमारा अनुमान है कि प्रति वर्ष लू चलने की पांच अतिरिक्त घटनाएं दर्ज की जा सकती हैं और कम से कम 50 करोड़ लोग उससे प्रभावित होने वाले हैं। शोध में सिंधु और गंगा नदियों के अलावा सिंधु-गंगा के मैदानों को लू के खतरों के प्रति ज्यादा संवेदनशील करार दिया गया है। यह उच्च तापमान और घनी आबादी वाला क्षेत्र है। लू और जनसंख्या के बीच की कड़ी दोनों दिशाओं में काम करती है।