कुमार दुष्यंत
हरिद्वार (दैनिक हाक): उत्तराखंड को आखिर लंबे समय बाद अतिथि गृह अलकनंदा की चाबी मिल तो गई लेकिन इसके लिए उसे लंबे वक्त तक संघर्ष करना पड़ा और कीमत भी चुकानी पड़ी। राज्य पुनर्गठन अधिनियम में व्यवस्था है की जो सम्पत्ति जिस राज्य में है उसपर उसी राज्य का अधिकार होगा और इसी आधार पर राज्य पुनर्गठन आयोग ने अलकनंदा उत्तराखंड को दिये जाने की सिफारिश भी की थी। इसके बाद जब 29 फरवरी 2003 को हरिद्वार के तत्कालीन जिला पर्यटन अधिकारी योगेन्द्र गंगवार अलकनंदा पर कब्जा लेने पहुंचे तो यूपी के अधिकारियों ने उन्हें बैरंग लौटा दिया। बताया गया कि यह उप्र पर्यटन निदेशालय द्वारा सृजित संपत्ति है अत: इसपर पुनर्गठन आयोग का नियम लागू नहीं होता। इसी आधार पर यूपी ने इसपर अपना दावा करते हुए अलकनंदा उत्तराखंड को देने के खिलाफ मामला सर्वोच्च न्यायालय में रख दिया। तभी से यह होटल यूपी के नियंत्रण में ही रहा। हालांकि तत्कालीन उप्र मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने संपत्तियों को लेकर कहा था कि उप्र बड़े भाई की तरह छोटे भाई उत्तराखंड को उसके सभी हक देगा। इसके बाद 2004 में जब मुलायम सिंह हरिद्वार आए तब सीसीआर में एक प्रेसवार्ता में इस संवाददाता ने उन्हें संपत्तियों को लेकर कही उनकी यह बात याद दिलाई तो उन्होंने कहा छोटे भाई बड़े भाई में विवाद भी होते हैं। इसलिए अब कोर्ट जो भी निर्णय देगा उसके अनुसार अलकनंदा का बंटवारा होगा। तब से ये मामला कोर्ट में था। दो साल पहले दोनों राज्यों में सहमति बनी की अलकनंदा उत्तराखंड को दिया जाएगा,बदले में उत्तराखंड इतनी ही जमीन यूपी के आवास गृह के लिए उप्र को देगा और साथ ही यूपी के आवास गृह को बनने में भी सहयोग करेगा और छोटे भाई उत्तराखंड ने बड़ा दिल दिखाते हुए ऐसा ही किया भी। जिस समय भागीरथी का निर्माण चल रहा था तब दो सौ मीटर निर्माण का नियम हरीश सरकार के फैसले के कारण निष्प्रभावी था। लेकिन गंगा की मुख्यधारा से भागीरथी दो सौ मीटर के दायरे में था। लेकिन भागीरथी का निर्माण उत्तराखंड ने होने दिया। यह भी आरोप है कि अलकनंदा के बदले जितनी भूमि दी जानी थी भागीरथी का निर्माण उससे कहीं अधिक भूमि पर हुआ है। लेकिन उत्तराखंड तो इसी में खुश है कि आखिर उसका अलकनंदा अब उसका है।