लखनऊ: यूपी में राज्यसभा के चुनाव होने है और इसको लेकर सियासी समीकरण साधने में अखिलेश यादव ने बड़ी सियासी चाल चल दी है। पश्चिमी यूपी में मुस्लिम-जाट समीकरण को और मजबूत करने के लिए अखिलेश यादव ने यह सियासी चाल चली है। खाली हुई 11 सीटों पर तीन सपा के कैंडिडेट जीत सकते हैं। इनमें से 2 सीटों पर पश्चिमी यूपी के नेताओं को ही राज्यसभा भेजने का अखिलेश यादव ने फैसला किया है। चर्चा तो थी कि डिंपल यादव राज्यसभा भेजी जाएंगी, लेकिन उनकी जगह अब जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का निर्णय लिया गया है। इससे पहले जावेद अली खान को राज्यसभा भेजने का फैसला ले लिया गया था। साफ दिखाई दे रहा है कि अखिलेश यादव ने ऐसा क्यों किया है। दोनों नेता पश्चिमी यूपी के बड़े नाम रहे हैं। खास बात यह है कि एक मुस्लिम और एक जाट नेता के सहारे अखिलेश यादव इस बिरादरी की गांठे आपस में मजबूत करने की कोशिशों में लगे हैं। जावेद अली खान संभल से हैं।
इसी साल विधानसभा के हुए चुनाव में इसी समीकरण के सहारे अखिलेश यादव को पश्चिमी यूपी में सियासी उम्मीद की किरण दिखी थी। सपा को ही नहीं बल्कि इस जाट-मुस्लिम समीकरण से जयंत चौधरी को भी भारी लाभ हुआ। 2017 के चुनाव में जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल के एक विधायक थे लेकिन 2022 के चुनाव में मुस्लिमों का साथ मिलने से उनकी सीटें एक से बढ़कर 8 हो गई। इसी तरह अखिलेश यादव को भी फायदा हुआ। पश्चिमी यूपी में उनकी भी सीटें बढ़ी। इसके अलावा बीजेपी की लैंडस्लाइड विक्ट्री को भी कुछ हद तक इस समीकरण से अखिलेश यादव ने बांधकर रखा। हालांकि आशंकाओं के उलट भाजपा ने पश्चिमी यूपी में भी अच्छा प्रदर्शन किया। फिर भी उसे थोड़ा नुकसान उठाना पड़ा। 2017 के चुनाव में पश्चिमी यूपी की 126 सीटों में से भाजपा ने 100 सीटें जीत ली थी। इस बार वह 85 जीत पाई। इस तरह 15 सीटों का उसे नुकसान उठाना पड़ा 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं। राष्ट्रीय लोक दल और समाजवादी पार्टी, दोनों को इसी जाट-मुस्लिम समीकरण से पश्चिमी यूपी में भी काफी सीटें मिलने की उम्मीद होगी। इन्हीं उम्मीदों को परवान चढ़ाने के लिए और जाट-मुस्लिम गठबंधन को और मजबूत करने के लिए समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा में एक मुस्लिम और एक जाट नेता को भेजने का फैसला लिया है।