देहरादून: सामाजिक कार्यकर्ता एवं सेवानिवृत्त ज्योलोजिस्ट हर्ष कुमार ने कहा है कि यह एक तथ्य है कि बढ़ती आबादी और वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण सभी शहरों में यातायात सुगम नहीं रह गया है। उन्होंने कहा कि सुबह दोपहर या शाम किसी भी समय जाम की समस्या से जूझना शहरवासियों की नियति हो गई है। उन्होंने कहा कि विकास के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर यह मानवीय चिंता का विषय बनना चाहिए और इसके लिए कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि बस्तियों को उजाड़ने से पहले उनका विस्थापन किया जाये। उन्होंने कहा कि अक्सर ऐसे समाचार पढ़ने को मिलते रहते हैं कि यातायात की समस्या से निपटने के लिए शहरों में बायपास मार्ग बनाए जाएंगे या एलिवेटेड रोड बनाई जायेंगी।
देहरादून में भी एलिवेटेड रोड बनाने के नाम पर बिंदाल और रिस्पना नदी के किनारे बसी मलिन बस्तियों को विस्थापित किए जाने का प्रयास हो रहा है। उन्होंने कहा कि विकास कार्यों से किसी को द्वेष नहीं हो सकता है किंतु इसके अन्य महत्वपूर्ण पक्ष की ओर भी जिम्मेदार लोगों का ध्यान जाना चाहिए। उन्हांेने कहा कि ऐलिवेटेड रोड निर्माण के बाद बस्तीवासियों को विस्थापित किया जाएगा वह कहां जायेंगें और क्या उनके लिए शासन ने योजनाकारों ने कुछ वैकल्पिक व्यवस्था की है। उन्होंने कहा कि क्या इस योजना में उनकी भी सहमति या सहभागिता है जिनका विस्थापन होना है और हर बार गरीब और वंचित को ही क्यों उजड़ना पड़ता है। उन्होंने कहा कि अगर इन बस्तियों को अवैध या अतिक्रमण कहा जा रहा है तो सबसे बड़ा प्रश्न है कि यह अस्तित्व में कैसे आईं है और क्या प्रशासन, व्यवस्था और सफेदपोश नेता इसके लिए जिम्मेदार नहीं है।
उन्होंने कहा कि ऐसे अनेक प्रश्न खड़े हो सकते हैं किंतु दंड केवल वंचित और अभागे लोगों को ही मिलता है। उन्होंने कहा कि जिनको अपनी जगह से उजाड़ा जाता है वह भी देश के नागरिक हैं और उनके भी कुछ अधिकार हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में उनका पक्ष और उनकी चिंताओं को भी सुना जाना चाहिए। उनका कहना है कि किसी के भी नागरिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है । उनका कहना है कि सभी प्रभावितों के अधिकारों और हितों का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने जीवन और जीवन जीने के साधन सभी के अनमोल हैं, चाहे धनी हो या निर्धन और लोकतंत्र में कल्याणकारी राज्य का क्या यह दायित्व नहीं है कि लाचार और कम भाग्यशाली लोगों की भी सुध ले।