हिजाब पर शीर्ष कोर्ट में जमकर बहस- वकील बोले- साड़ी की तरह ही हिजाब भी गरिमा का प्रतीक

supreme court

नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत में न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और न्यायाधीश सुधांशु धूलिया की पीठ ने कर्नाटक में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर पाबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई की। इस दौरान अदालत के सामने वकील दुष्यंत दवे ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षण धार्मिक अभ्यास के साथ हैं जो धर्म का अभिन्न और अनिवार्य हिस्सा है। एक अभ्यास धार्मिक अभ्यास हो सकता है, लेकिन उस धर्म का अभ्यास का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग नहीं है। बाद का जो तर्क है वो संविधान संरक्षित नहीं है। 

जस्टिस धूलिया ने कहा कि क्या हम आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को अलग कर स्थिति से नहीं निपट सकते? जिसके जवाब में दवे ने कहा कि हाईकोर्ट ने केवल जरूरी धार्मिक प्रथा पर ही मामले को निपटा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनिफॉर्म एक बेहतरीन लेवलर है। एक ही जैसे कपड़े पहनने पर देखिए, चाहे छात्र अमीर हो या गरीब, सब एक जैसे दिखते हैं। जिस पर वकील दवे ने कहा कि लड़कियां हिजाब पहनना चाहती है तो इससे किसके संवैधानिक अधिकार का हनन हुआ है? दूसरे छात्रों का या स्कूल का? 

दवे ने कहा कि हिजाब गरिमा का प्रतीक है। एक मुस्लिम महिला को एक हिंदू महिला की तरह सम्मानजनक दिखता है, जब वह साड़ी के साथ अपना सिर ढकती है तो वह सम्मानित दिखती है। बता दें कि पीठ के समक्ष 23 याचिकाओं का एक बैच सूचीबद्ध है। उनमें से कुछ मुस्लिम छात्राओं के लिए हिजाब पहनने के अधिकार की मांग करते हुए सीधे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर रिट याचिकाएं हैं। कुछ अन्य विशेष अनुमति याचिकाएं हैं जो कर्नाटक हाई कोर्ट के 15 मार्च के फैसले को चुनौती देती हैं जिसने हिजाब पाबंदी को बरकरार रखा था।



Related posts

Loading...

More from author

Loading...