वॉशिंगटन:L अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बार-बार बयान बदलने को लेकर सुर्खियों बटोरते रहते हैं, लेकिन इस बार वजह है उनकी संभावित तीसरी पारी को लेकर दिए गए संकेत। जहां ट्रंप दूसरी बार राष्ट्रपति पद पा चुके हैं, वहीं उन्होंने हाल ही में यह कहकर हलचल मचा दी कि लोग उनसे तीसरी बार भी चुनाव लड़ने और जीतने की मांग कर रहे हैं। मतलब तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की इच्छा ट्रंप जता रहे हैं, जिसका अमेरिकी कानून में प्रावधान नहीं है।
पिछले दिनों व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा था, कि लोग मुझसे कह रहे हैं कि मैं फिर से चुनाव लड़ूं। क्या मैं चाहता हूं? मुझे नहीं पता... मैंने इस बारे में कभी कुछ सोचा नहीं। लेकिन लोग तो कहते हैं, इसके लिए रास्ता है। इसके बाद एक अमेरिकी चैनल से फोन पर बातचीत में ट्रंप ने कहा, मुझे काम करना पसंद है, मैं मजाक नहीं कर रहा। विशेषज्ञों की मानें तो ट्रंप की यह मंशा अमेरिकी संविधान से टकराने वाली है। दरअसल संविधान में स्पष्ट प्रावधान कि कोई व्यक्ति दो से ज्यादा बार राष्ट्रपति नहीं बन सकता है। अमेरिकी संविधान का 22वां संशोधन- कोई भी व्यक्ति दो बार से अधिक राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित नहीं किया जा सकता।
यह परंपरा अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन के समय शुरू हुई, जिन्होंने 1789 से 1797 तक दो कार्यकाल पूरे करने के बाद स्वेच्छा से पद छोड़ दिया था। इसके बाद लगभग 150 वर्षों तक सभी राष्ट्रपतियों ने इसी परंपरा का पालन किया।
असाधारण परिस्थितियां और रुजवेल्ट एक अपवाद
अब तक अमेरिका के इतिहास में केवल फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ही ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं, जिन्होंने तीसरा और चौथा कार्यकाल भी पूरा किया था। दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान असाधारण परिस्थितियों में उन्होंने यह जिम्मेदारी निभाई थी। 1945 में उनके निधन के बाद, कांग्रेस ने इसे अपवाद मानते हुए 1947 में 22वें संशोधन को मंजूरी दी, जिसे 1951 तक राज्यों द्वारा भी स्वीकार कर लिया गया।
अब बात करें ट्रंप के हालिया बयान और संकेत की तो यह एक जुमला और हंसी-मजाक में की गई बयानवाजी भी हो सकती है, लेकिन जैसे ही इस पर चर्चा शुरु हुई और दबाव बढ़ा तो ट्रंप ने अपने बयान से पलटी मार ली। बताया जा रहा है कि ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि वो अब चुनाव नहीं लड़ेंगे और उनकी जगह कौन लेना इस पर बहस छिड़ गई है। वैसे तीसरे कार्यकाल को लेकर विशेषज्ञों का तो यही मानना है कि संविधान में संशोधन के बिना यह संभव नहीं है।