US Farmer Aid : ट्रंप की टैरिफ नीति ने किसानों को वैश्विक बाजार से किया बाहर, व्यापार नीति पर सीनेटर का बयान

टैरिफ विवाद के बीच ट्रंप के किसान पैकेज पर तीखी राजनीतिक प्रतिक्रिया
ट्रंप की टैरिफ नीति ने किसानों को वैश्विक बाजार से किया बाहर, व्यापार नीति पर सीनेटर का बयान

वांशिंगटन: अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित 12 अरब डॉलर के नए किसान सहायता पैकेज पर सियासत तेज हो गई है। शीर्ष डेमोक्रेटिक नेता और अमेरिकी सीनेटर मारिया कैंटवेल ने इस योजना को किसानों के लिए बेहद नाकाफी राहत बताया। उनका कहना है कि यह कदम उन नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता, जो ट्रंप की टैरिफ नीतियों की वजह से अमेरिकी कृषि क्षेत्र को पिछले कई वर्षों में झेलने पड़े हैं।

कैंटवेल ने कहा कि ट्रंप प्रशासन की व्यापारिक नीतियों ने वैश्विक बाजारों का संतुलन बिगाड़ दिया और कई प्रमुख अमेरिकी उत्पादों के निर्यात पर बड़ा असर पड़ा, खासतौर पर उन वस्तुओं पर जिन्हें भारत जैसे बड़े बाजार में पहले बड़ी मात्रा में भेजा जाता था।

ट्रंप ने हाल ही में घोषणा की थी कि वह सोयाबीन, मक्का, गेहूं, मसूर, चना और जौ उत्पादकों के लिए नए किसान सेतु सहायता कार्यक्रम के तहत 11 अरब डॉलर तक देने का प्रस्ताव कर रहे हैं। इसके अलावा 1 अरब डॉलर विशेष फसलों के लिए निर्धारित किया जाएगा। हालांकि प्रशासन ने अभी तक इन राशियों के वितरण की समय-सीमा और प्रक्रिया स्पष्ट नहीं की है। माना जा रहा है कि भुगतान 28 फरवरी 2026 तक जारी कर दिए जाएंगे।

यह सहायता राशि कमोडिटी क्रेडिट कॉरपोरेशन के माध्यम से प्रदान की जाएगी और फार्म सर्विस एजेंसी इसका प्रबंधन करेगी। यह घोषणा उस पहली टैरिफ वॉर के लगभग एक वर्ष से भी अधिक समय बाद आई है, जिसके चलते कई देशों ने अमेरिकी उत्पादों पर कड़े जवाबी शुल्क लगाए थे।

सीनेटर कैंटवेल ने कहा कि यह राहत योजना बहुत कम और बहुत देर से आई है। उनके अनुसार, वाशिंगटन के किसान किसी छोटी-मोटी राहत नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि उनके उत्पाद दुनिया भर में आसानी से भेजे जा सकें। ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने वर्षों की मेहनत से बनाए गए विदेशी बाजार और शेल्फ स्पेस को खराब कर दिया है।

उन्होंने चेतावनी दी कि यह व्यापारिक तनाव अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के उन महत्वपूर्ण निर्यात केंद्रों को खतरे में डाल रहा है, जहां हर साल लगभग 20 अरब डॉलर का कृषि व्यापार किया जाता है। उनका कहना था कि ट्रंप की नीतियों का बोझ आम अमेरिकी उपभोक्ताओं, विनिर्माताओं और छोटे कारोबारियों पर पड़ा है, जो लगातार महंगे आयात का खर्च उठा रहे हैं।

विशेष फसलें अमेरिकी कृषि उत्पादन का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बनाती हैं, इसके बावजूद इन्हें केवल 8 प्रतिशत सहायता मिलेगी। इन फसलों में सेब, चेरी, आलू और पल्सेज शामिल हैं। यह वही सेक्टर हैं, जिन्हें तब बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था जब भारत ने ट्रंप द्वारा लगाए गए स्टील और एल्युमीनियम टैरिफ के जवाब में अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिए थे।

रिपोर्ट में बताया गया कि भारत को अमेरिकी सेब निर्यात 2017 के 120 मिलियन डॉलर से 2023 में घटकर 1 मिलियन डॉलर से भी कम रह गया। कैंटवेल की वर्षों की कोशिशों के चलते भारत ने सितंबर 2023 में अपने जवाबी शुल्क हटाए, जिसे वाशिंगटन के 1,400 से अधिक सेब उत्पादकों और हजारों श्रमिकों के लिए बड़ी राहत माना गया।

कैंटवेल ने अपने द्विदलीय व्यापार समीक्षा अधिनियम का भी उल्लेख किया, जिसे उन्होंने सीनेटर चक ग्रास्ले के साथ मिलकर पेश किया है। यह कानून राष्ट्रपति की टैरिफ शक्तियों पर नियंत्रण और कांग्रेस की निगरानी बढ़ाने की मांग करता है। इस प्रस्ताव को दोनों दलों और कई बड़े व्यापार संगठनों का समर्थन मिल रहा है।

रिलीज में फेडरल रिजर्व बैंक ऑफ सेंट लुइस के शोध का भी हवाला दिया गया, जिसके मुताबिक टैरिफ बढ़ने से वाहनों, इलेक्ट्रॉनिक्स और फर्नीचर जैसे कई उत्पादों की कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई है।

--आईएएनएस

 

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